पौधों में कटाई छटाई (कृन्तन) करने के उद्देश्य, नियम एवं कटाई छटाई की विधियां

बहुत - से फल वाले पौधों में कटाई छटाई या कृन्तन (pruning in hindi) की क्रिया न की जाये तो वे जंगली पौधों की तरह बढ़ने लगते है तथा उन पर कोई भी फल पैदा नहीं होते ।

सभी फल वाले पौधों में कटाई छटाई (कृन्तन) की क्रिया आवश्यक नहीं होती ।

इसी प्रकार से छोटे फल वाले पौधे जैसे - केला, अनन्नास तथा पपीता इत्यादि को अपनी प्राकृतिक अवस्था में ही बढ़ने दिया जाता है । 

इसके दूसरी तरफ बहुत से पर्णपाती फल - वृक्ष जैसे - सेब, नाशपाती, आडू तथा अंगूर इत्यादि को नियमित रूप से काट - छाँट की आवश्यकता होती है ।


कटाई छटाई या कृन्तन क्या है अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition pruning in hindi)


बहुत - से सदाबहारी मैदानी फल वाले पौधों जैसे - आम तथा चीकू में कटाई छटाई या कृन्तन (pruning in hindi) की क्रिया में केवल मरी या सूखी हुई शाखाओं को काटा जाता है ।

पौधों में कटाई छटाई (कृन्तन) करने के उद्देश्य, नियम एवं कटाई छटाई की विधियां, कृन्तन (pruning in hindi) क्या है, इसके प् एवं कृन्तन करने का समय व औजार
पौधों में कटाई छटाई या कृन्तन (pruning in hindi)

कटाई छटाई या कृन्तन की परिभाषा (Definition of pruning in hindi)


पौधों के अन्दर उनकी वृद्धि और स्वास्थ्य तथा फल उत्पादन में एक सन्तुलन कायम रखने के उद्देश्य से जो काट - छाँट की क्रिया की जाती है, कटाई छटाई या कृन्तन (pruning in hindi) कहलाती है ।

अलंकृत पौधों में कृन्तन की क्रिया उनकी सुन्दरता बढ़ाने के लिये की जाती है ।

नींबू प्रजाति के फल, अनार तथा अमरूद में प्रारम्भिक कटाई छटाई या कृन्तन (Pruning in hindi) की क्रिया के अन्दर कुछ शाखाओं को अच्छी आकृति देने के उद्देश्य से काटा - छाँटा जाता है ।


पौधों में कटाई छटाई (कृन्तन) करने के क्या उद्देश्य है?


पौधों में किन उद्देश्यों से कटाई छटाई कृन्तन (pruning in hindi) किया जाता है, वह निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य होते है -


( 1 ) पौधों में कटाई छटाई या कृन्तन (Pruning in hindi) द्वारा बनावटी ढंग से आराम देना – 

फलों की किस्म बढ़ाने के उद्देश्य से सदाबहारी पौधों को कृन्तन द्वारा बनावटी ढंग से आराम पहुँचाया जाता है ।


( 2 ) फल - वृक्षों को अधिक मजबूत बनाना जब फल -

वृक्षों को छोटी अवस्था से काटा - छाँटा जाता है तो उनके अधिक शक्तिशाली ढाँचे बनकर तैयार हो जाते है तथा वे तेज हवा आँधी - तूफान इत्यादि में अधिक सुगमता से नहीं टूटते हैं ।


( 3 ) पौधों को सुन्दर बनाना -

यह बात अलंकृत पौधों के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण समझी जाती है, जिसमें कि उनको अधिक आकर्षक बनाने के लिये किसी आकृति में बदल दिया जाता है ।


( 4 ) नयी फल उत्पन्न करने वाली शाखाओं की वृद्धि को उत्तेजित करना -

बहुत - से फल वाले पौधे ऐसे हैं जिनमें फल नयी निकली हुई शाखाओं पर बनते हैं । फलों की तोड़ाई के पश्चात ऐसी शाखाओं को काट देना चाहिये, जिससे अगली फलत के लिये नयी शाखाओं का वृद्धि हो सके ।


( 5 ) पौधों में हवा एवं प्रकाश प्रवेश करने के लिये - 

घने फल - वक्षों की शाखाओं का । कार - काट कर पोधे को खोल देते है, जिससे हवा एवं प्रकाश की अधिक मात्रा पौधे के अन्दर प्रविष्ट हो सके ।


( 6 ) पौधों में छिड़काव एवं धूलिकरण को सुगमता प्रदान करना -

फल वृक्षों की कटाई - छंटाई द्वारा पौधों को छोटा बना दिया जाता है जिससे छिडकाव एवं धलिकरण कम समय एवं कम खर्च के साथ सुगमतापूर्वक किया जा फलों की तुड़ाई में सुगमता प्रदान करना


( 7 ) फलों की तुडाई मै सुगमता प्रदान करना - 

कृन्तन की क्रिया द्वारा पौधों का घनापन दूर हो जाता है, फल पक्षों की कटाई - छंटाई ( कन्तन ) हो जाता है तथा उनकी ऊंचाई भी कम हो जाती है, जिससे फलों की तलाई मुगमतापूर्वक कम समय तथा का खर्च के साथ की जा सकती है ।


( 8 ) बीमारियों एवं कीड़ों की रोकथाम -

पौगों के ऐसे किसी को काटकर अलग कर दिया जाता है जिन पर कीड़ों का प्रकोप है या रोगसित है, जिससे ये और आगे न पनपकर हानि पहुंचा सके ।


( 9 ) पौधों के खाद्य पदार्थ को उत्पादन क्षेत्र की तरफ बढ़ाना -

कम उत्पादन करने वाली या बेकार की शाखाओं को काटकर पौधे का खाद्य - पदार्थ फल उत्पन्न करने वाली शाखाओं की तरफ अगसर किया जा सकता है, जिससे फल बड़े आकार के व अधिक मात्रा में प्राप्त हो सकते हैं ।


( 10 ) घनी कलियों या छोटे फलों का विरलीकरण (thinning) करके फलों का आकार बढ़ाना - 

जब फल कलियाँ अधिक धनी पैदा होती हैं तो बीच - बीच से कुछ कलियों को निकाल देते है या फिर गुच्छे के नीचे से कुछ फलों को तोड़कर अलग कर देते हैं जबकि ये छोटे होते है ऐसा करने से शेष फलों का आकार बढ़ जाता है ।


कटाई छटाई या (कृन्तन) करने के नियम (rules of pruning in hindi)


पौधों में कटाई छटाई (कृन्तन) करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवशयक होता है, वह नियम है -

1. सर्वप्रथम पौधे से मरी या सूखी हुई, रोगग्रसित एवं कमजोर शाखाओं को काटकर अलग कर देना चाहिये ।

2. पौधों की घिनकी आर - पार जाने वाली तथा एक - दूसरे पर चढ़ी हुई शाखाओं को काटकर पौधों को खुला बना देना चाहिये । 

3. जो शाखायें जमीन के बहुत सम्पर्क में हों, काट देनी चाहिये । 

4. शेष बची हुई शाखाओं को या उनके कुछ हिस्सों को इस प्रकार काटना चाहिये कि कटान साफ एवं सीधे हों तथा शाखा के पर की कलिका बाहर की तरफ रहे । तत्पश्चात् कटे हुए भागों को पेन्ट कर देना चाहिये ।

5. अगर पौधों में कार्बोहाइड्रेट की कमी से फलत कम होती है तो जड़ों का कृन्तन कुछ मात्रा में कर देना चाहिये ।


पौधों में कटाई छटाई (कृन्तन) कितने प्रकार से किया जाता है? (types of pruning in hindi)


पौधों में कटाई छटाई (कृन्तन) निम्न प्रकार से किया जाता है -

1. पौधों की शाखाओं का कृन्तन करना ( Pruning of branches ) 

2. जड़ों का कृन्तन करना ( Root pruning ) 

3. कृन्तन की अन्य विधियां - तना, पत्ती, फूल एवं फल कृन्तन ।


1. पौधों की शाखाओं का कृन्तन करना (pruning of branches)

पौधे की अवांछित शाखाओं या प्ररोहों को जब पूर्णरूप से बिना कोई अवशेष या दूंठ जड़ते हुए काट दिया जाता है, तो इस क्रिया को 'थिनिंग' कहा जाता है ।

इस क्रिया को करने से पौधे की शक्ति को एक शाखा से दूसरी शाखा में पहुंचाया जा सकता है, उद्यानिकी के मूल तत्व सकता है ।

अगर एक ही मुख्य शाखा पर बहत - सी छोटी शाखायें बढ़ रही हों और उनमें से कुछ शाखाओं को काटकर अलग कर दिया जाये तो शेष शाखायें अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं ।

इस विधि से पौधों की वृद्धि भी अच्छी होती है तथा फलत भी होती है ।


हैडिंग बैक (Heading Back)

जब पौधे की सभी शाखाओं के अग्रम या ऊपरी हिस्से काट दिये जाते हैं तथा नीचे का हिस्सा जुड़ा छोड़ दिया जाता है तो इस क्रिया को 'हैडिंग बैक' कहा जाता है ।

इस क्रिया का मुख्य उद्देश्य पौधे की शक्ति को शाखा के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुँचाना होता है ।

जब शाखा का ऊपरी भाग काट दिया जाता है तो कटे हुए भाग के नीचे से बहुत - सी शाखायें पैदा होती हैं, जो फलों की अच्छी मात्रा उत्पन्न करती हैं ।

इस विधि द्वारा पौधे की किसी शाखा पर आवश्यकतानुसार शाखायें प्राप्त की जा सकती हैं ।

शाखाओं के ऊपरी भाग कट जाने से पौधे की ऊँचाई कम हो जाती है ।


कृन्तन की यह विधि उन फल वाले पौधों में करनी उपयुक्त समझी जाती है जिनमें फल पैदा करने वाले हिस्से पार्श्व रूप से ( Laterally ) एक वर्ष पुरानी शाखाओं के निचले भागों में पैदा होते हैं ।

दूसरी तरफ यह विधि उन पौधों के लिये हानिकारक होगी जिन पर फल शाखाओं के अग्र भाग पर पैदा होते हैं ।


2. पौधों की जड़ों का कृन्तन करना (root pruning in hindi)

जड़ कृन्तन के द्वारा पौधों में फलत को बढ़ाया जाता है ।

यह क्रिया स्थान तथा पौधों की किस्म के अनुसार विभिन्न प्रकार से की जाती है लेकिन उसका प्रभाव एक - समान ही होता है ।

कृन्तन की क्रिया करने के उद्देश्य से फूल आने से चार महीने पहले सिंचाई बन्द करके पौधे के चारों तरफ की मिट्टी को सूखने दिया जाता है, जिससे पौधे की पत्तियाँ धीरे - धीरे पूर्ण मात्रा में गिर जाती हैं ।

फूल आने से एक माह पहले छोटी जड़ों को काटकर निकाल देते हैं तथा बड़ी जड़ों को कुछ समय के लिये खोल दिया जाता है ।

इस क्रिया को सम्पन्न करने के लिये कभी - कभी पौधे के चारों तरफ 60 सेमी के अर्द्धव्यास में मिट्टी को 10 से 15 सेमी की गहराई तक खोदकर निकाल देते है तथा कभी - कभी खोदने की इस क्रिया को कुछ गोलाई में ही सीमित न रखकर तने से फैली हुई शाखाओं के आखिरी सिरों तक करते हैं ।

इस प्रकार से पौधे की छोटी जड़े मिट्टी के साथ काटकर बाहर निकाल देते हैं ।


मूल - कृन्तन की दूसरी विधि में पौधों की गोलाई । के बाहरी किनारे पर 75 से 90 सेमी गहरी खाई खोद दी जाती है तथा इसको पार करने वाला ।

सभी जड़ें काट दी जाती है क्रिया करने के कुछ समय उपरान्त खाई को ताजी मिट्टी तथा अच्छी सड़ी हुई गोबर को खाद के मिश्रण से भर दिया जाता है ।

पहले हल्की और बाद में गहरी सिंचाई कर देते हैं ।

ऐसा करने से पौधे में नई पत्तियां निकल आती है तथा कार्बोहाइडेट की पौधे में अधिक मात्रा होने के कारण फूल अधिक पैदा होते हैं ।

मूल कृन्तन को वर्षा ऋतु में करना उचित समझा जाता है ।

पौधों की सिंचाई बन्द करने एवं जडें काट देने से नत्रजन का शोषण प्रायः बन्द हो जाता है लेकिन पौधे पर जब तक पत्तिया रहती हैं।

कृन्तन की क्रिया द्वारा कार्बोहाइडेट तैयार होता रहता है जिसका अधिकांशतः भाग वद्धि न होने से पौधे में इकट्ठा होता रहता है । 


पौधों की खाई को भरते समय खाद तथा फल वृक्षों की पौधों में कटाई छटाई या कृन्तन (pruning in hindi) बाद में पानी देने से नई वृद्धि होने लगती है तथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पहले से ही पौध में होने की वजह से फूल अधिक मात्रा में पैदा होते हैं ।

यह क्रिया C:N अनुपात के बढ़ने से ही सम्पन्न होती है । 

हल्के रूप में मूल कृन्तन पौधों में कुछ दिनों के लिये पानी बन्द करके या हल द्वारा जुताई करके सम्पन्न की जा सकती है ।

जिसके परिणाम स्वरूप पौधों की ऊपरी स्तर पर रहने वाली छोटी - छोटी जड़ें पानी के अभाव में सख जाती हैं या हल द्वारा जताई करने से काट दी जाती है।


पौधों में कटाई छटाई या (कृन्तन) किन-किन विधियों द्वारा किया जाता है? (methods of pruning in hindi)


पौधों में कटाई छटाई या (कृन्तन) करने कि प्रमुख विधियां अपनाई जाती है -


1. पिन्चिंग (Pinching in hindi) -

इस क्रिया के अन्तर्गत तने या शाखाओं के ऊपरी सिरे दो - तीन पनियों के साथ तोड दिये जाते हैं ।

इसको हम Heading back का ही एक रूप मान सकत हैं ।

इसको अधिकतर अलंकृत एक वर्षीय पौधों जैसे - डहेलिया, गुलदाउदी इत्यादि में अपनाते है ।


2. वलयन (Ringing in hindi)

किसी तने या डाली से लगभग 1 - 1.5 सेमी लम्बाई में छाल जब वलय के रूप में काटकर निकाल दी जाती है तो इस क्रिया को वलयन ( Ringing ) कहा जाता है ।

वलय बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है, कि ऊपर के Phloem भाग को पूर्णतः निकालकर अलग कर दें लेकिन लकड़ी को किसी भी प्रकार की क्षति न पहुंचने दें ।

इस प्रकार से पत्तियों द्वारा निर्मित कार्बोहाइड्रेट वलय से ऊपर शाखा में तब तक इकट्ठा होता रहता है जब तक कि वलय का घाव पूर्ण नहीं हो जाता ।


इस उद्देश्य की पूर्ति वलय के स्थान पर तार कमकर बाँधने से भी हो सकती है जिसको 'Girdling' कहा जाता है । 

शाखाओं के ऊपरी भागों में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाने से फल कलिकायें अधिक मात्रा में पैदा होती हैं ।

फल - वृक्षों में यह क्रिया तब अपनाई जाती है जबकि फलत कम हो जाती है ।


पौधों में कटाई छटाई या (कृन्तन) करने का उत्तम समय कोन-सा है? (time of pruning in hindi)


सदाबहारी फल वाले पौधों में कटाई छटाई या (कृन्तन) फल आने के समय एवं उनकी पैदा होने की आदत के ऊपर निर्भर करता है ।

ऐसे फल - वृक्ष जिनमें फल एक वर्ष पुरानी शाखाओं पर पैदा होते हैं ।

कृन्तन की क्रिया फलों की तोड़ाई के बाद करनी चाहिये ।

इसमें ऐसी शाखायें काट देनी चाहिये जो फलत दे चुकी हों ।

जिन फल - वृक्षों में फलत नई शाखाओं पर होती है, उनमें कृन्तन फल पैदा होने के इतने समय पहले कर देना चाहिये, नई शाखायें निकलकर फूल पैदा कर सकें ।

पर्णपाती फल - वृक्षों का कृन्तन उनकी सुषुप्तावस्था के समय करना चाहिये, जिससे सुषुप्तावस्था समाप्त होते ही वे फल खूटियाँ तैयार कर सकें ।

सूखी या मरी हुई तथा रोगग्रसित शाखाओं को पेड़ से किसी भी समय काटा जा सकता है ।


पौधों में कटाई छटाई या (कृन्तन) की मात्रा (amount of pruning in hindi)


कृन्तन के समय पौधे का कितना हिस्सा काटा जाये, यह फल - वृक्षों के स्वभाव एवं उसके स्वास्थ्य के ऊपर निर्भर करता है ।

यह पूर्णतः स्पष्ट है, कि आवश्यकता से अधिक कृन्तन (pruning in hindi) करने से पौधे कमजोर हो जाते हैं तथा उनमें फलत भी कम होती है ।


पौधों में कटाई छटाई या (कृन्तन) करने के लिए उपयोग किए जाने वाले औजार (tools of pruning in hindi)


पौधों में कटाई छटाई या (कृन्तन) करने के लिए प्रमुख औजार उपयोग किए जाते है -

1. कृन्तन का चाकू ( Pruning knife ) 

2. कृन्तन की कैंची ( Pruning shears )

3. सैकेटियर्स ( Secateurs ) 

4. कृन्तन की आरी ( Pruning saw ) 

5. कृन्तन का गंडासा ( Bill hook )  

6. ट्री पूनर ( Tree pruner ) 

7. लूपर्स ( Loopers ) इत्यादि ।