फलों के गिरने के कारण एवं उपाय

फलों के गिरने के कारण एवं उनके उपाय ( Causes and remedies for fall of fruits )


फल उत्पादन कर्ताओं के लिये, तोड़ाई से पहले फलों का गिरना (Fruit drop in hindi) प्राचीन समय से एक गम्भीर समस्या रहा है ।

बागवानी (horticulture in hindi) में समय से पहले ही फल एवं फूल गिर (झड़ने) लगते है, जो कि एक गम्भीर समस्या है ।

फलों के गिरने के कारण एवं उपाय ( Causes and remedies for fall of fruits )
फलों के गिरने के कारण एवं उपाय


फलों का गिरना ( Fruit Drop in Hindi )


फल वृक्षों की बहुत - सी जातियों के फल पकने से पहले एवं तोड़ाई करते समय डंठल से ढीले होकर फल, फूल गिरने लगते हैं, ऐसे में फल क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तथा बाजार में ये बहुत ही कम कीमत पर बेचे जाते हैं ।

फल उत्पादनकर्ता इस समस्या से भयभीत होकर फलो को पकने से काफी समय पहले तोड लेते हैं ।

जिससे उनका रंग खराब मिलता है, आकार छोटा रहता है तथा उनकी किस्म गिरी हुई मिलती है ।

फल क्यों गिरते है?


फल तथा पत्तियाँ एक विशेष प्रकार की ऊतकाओं के पृथक होने से गिरने लगते हैं, जिसको विगलन पर्त ( Abscission laver ) कहते हैं।

यह पर्त फल तथा डंठल के मध्य पाई जाती है । फलों का गिरना बहुत से कारकों, जैसे - मौसम तथा जलवायु, कर्षण क्रियाओं, फल की जाति तथा फल की बनावट इत्यादि से प्रभावित होता है ।

फलों के गिरने के प्रकार ( types of fruit drop in hindi )



प्राय: फलों के गिरने की निम्नलिखित अवस्थाएं होती है फल निम्न प्रकार से गिरते हैं -


( 1 ) प्रथप गिरना ( The First Drop ) —


यह बहुत ही शीघ्र फूल आने के तुरन्त बाद ही शुरू हो जाता है । गिरे हये फूलों के अध्ययन से यह पता चला कि इनमें मादा अंग (Pistils) खराब हैं । इस प्रकार के पुष्प शीघ्र ही जमीन पर गिर जाते हैं ।

( 2 ) द्वितीय गिरना ( The Second Drop ) —


सामान्यतः केलिक्स ट्यूब टुकड़ों में टूट जाती है । केलिक्स ट्यूब की तरह ही पिस्टिल भी गिर जाती है तथा बाद में वे फूल जमीन पर गिर जाते हैं ।

इस डोप में जो पिस्टिल गिरती है वह हरी अवस्था में होती है यद्यपि पैडीसिल हल्के पीले रंग का हो जाता है ।

( 3 ) तृतीय गिरना या जून में गिरना ( The Third Drop or June Drop )


जून ड्रोप नाम तीसरी बार फलों के गिरने को दिया गया है जिसमें अलूचा के फल अधिक मात्रा में जमीन पर गिर जाते हैं ।

हालाँकि थोड़े बहुत फल, बनने तथा पकने के समय के मध्य गिरते रहते हैं ।

उत्तरी भारत में यह अलूचा के फलों का गिरना जून के अंतिम दिनों में होता है जबकि ऊष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में किसी भी महीने में हो सकता है ।

बहुत से फल वाले वक्षों में फुल अथवा फल पकने से पहले अधिकतम रूप से गिरते हैं,  जैसे कि सेब, नाशपाती, आडू, अल्चा, अंगूर तथा खुबानी ।

इसी प्रकार ऊष्ण तथा उपोष्ण देशीय कल जैसे आम, नींब तथा अन्य नींबू प्रजाति के फल ।

ऐसा देखा गया है कि जो फल - वृक्ष जुलाई या इसके बाद फल पैदा करते हैं एवं जनवरी - फरवरी तक तोड़ लिये जाते हैं, उनमें फल नहीं है ।

ऊष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्र में आम, जामुन, लीची, कागजी नींबू तथा अन्य नींबू प्रजातियों ल जनवरी के बाद पैदा होते हैं इसलिये उनमें बिना किसी रुकावट के फल गिरते है ।

फलों के गिरने के कारण ( Causes of Fruit Drop )



फलों के गिरने के निम्नलिखित कारण होते हैं -



( 1 ) फूल की बनावट में कमी ( Structural Defects ) -


फूल के हिस्सों में कमी शीत क्षति, फुव्वार से हुई क्षति, कीट क्षति होने से फूल एवं फल गिरने लगते हैं ।

सेब में खराब पिस्टल (Defective Pistils) के कारण फूल शुरुआत में ही गिर जाते हैं ।

ओव्यूल में खराबी (Defective Ovule) के कारण भी फूल जमीन पर गिर जाते हैं ।

( 2 ) असफल स्वंसेचन ( Non - pollination ) -


स्वंसेचन जब फेल हो जाता है एवं परसेचन भी उपयुक्त पराग की कमी अथवा पराग वाहक कीटों की कमी से जब असफल हो जाता है ।

यहाँ तक कि जब पराग गर्भाशय के नजदीक पहुँच कर बिना गर्भाधान क्रिया किये हुये पानी द्वारा जब धुल जाता है तो फूल जमीन पर गिर जाते हैं ।

( 3 ) असफल गर्भाधान ( Non - fertilization ) -


यह निम्न कारणों से असफल होता है -


( अ ) गैमिट वन्ध्यता ( Gametic Sterility )


सेब की त्रिगुणसूत्रीय जातियों में या तो परागकण उगते नहीं हैं या फिर जो पराग नलिकायें बनती हैं, वे टूट जाती हैं अथवा वे गर्भाशय तक पहुँचती हैं और असंतुलित भ्रूणों को पैदा करती है ।

( ब ) मिलने की असमर्थता ( Incompatability )


वैज्ञानिकों द्वारा ऐसा बतलाया गया है कि सेब तथा नाशपाती में असंयोजकता कारकी प्रभावों द्वारा पराग नलिका तथा गर्भाशय ऊतियों के मध्य पैदा हो जाती है ।

( स ) वातावरण की खराब परिस्थितियाँ ( Adverse Weather Conditions ) 


शीत लहर द्वारा पराग नलिका की वृद्धि धीमी पड़ जाती है जिससे कि गर्भाधान नहीं हो पाता है । गर्म - सूखी हवाओं का प्रभाव भी इसी प्रकार पड़ता है ।

( द ) दोहरे गर्भाधान की असफलता ( Failure of Double Fertilization ) –


दोहरे गर्भाधान की असफलता के कारण एन्डोस्पर्म का निर्माण अवरुद्ध हो जाता है तथा भ्रूण नहीं बनता

( य ) भ्रूण नष्ट होना ( Abortion of Embryo ) - 


जब भ्रूण आनुवांशिक अथवा अनुपयुक्त खाद्य पदार्थ की दशा के कारण नष्ट हो जाता है तो फल जमीन पर गिर जाते हैं ।

फलों के गिरने को प्रभावित करने वाले कारण 


फलों का गिरना निम्नलिखित कारणों से प्रभावित होता है -


( 1 ) वातावरण की दशा ( Weather Condition ) -


गर्म हवाओं के उपरान्त ठंडी रातें फल - फूल गिरने को बढ़ावा देती हैं ।

हवायें जब अधिक तेज चलती हैं जो पेड को हिलाकर फलों को डंठलों से ढीला कर देती हैं , जिससे फल गिर जाते हैं ।

( 2 ) जलवायु ( Climate ) -


फलों के गिरने में जलवायु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । Enzie एवं Schneider ( 1940 ) ने बताया कि मैक्सिकों में सेब की एक जाति के पौधों में ।

'जून ड्रोप' से फलों की तोड़ाई तक लगातार सेब के फल गिरते रहे ।

( 3 ) कर्षण क्रियायें ( Cultural Treatment ) -


बहुत से वैज्ञानिकों ने यह मालूम किया कि सेब में नत्रजन उर्वरक देकर फलत बढ़ाने पर फल अधिक संख्या में जमीन पर गिरते है ।

फलोद्यान अधिक घना होने व छाया रहने से फलों के गिरने में बढ़ोत्तरी होती है ।

अपेक्षाकृति एस फलोद्यानों के जिनको कृन्तन द्वारा खुला बना दिया जाता है तथा पौधों पर हल्के फफूंदी नाश का छिड़काव कर दिया जाता है ।

( 4 ) स्थानीय भिन्नता ( Local Variability ) -


थोड़ी सी स्थानीय भिन्नता का प्रभाव भी फलों के गिरने पर पड़ता है ।

बहुत से वैज्ञानिकों ने बतलाया कि किसी स्थान पर पौधों से फल अधिक गिरते हैं जब कि किसी स्थान के पौधे से कम ।

यहां तक कि यह बात एक ही ब्लॉक के पौधों में देखी गई । फलों के गिरने की यह भिन्नता मिट्टी की दशा तथा पौधों पर पैदा हुई फलत के वजन के कारण होती है ।

( 5 ) जातीय भिन्नता ( Varietal Differences ) -


सेब की बहत सी जातियों में फल अधिक मात्रा में गिरते हैं , विशेषकर सूखे मौसम में , और कुछ जातियों में कम ।

सेब की ऐसी जातियाँ जिनमें फल शीघ्र पकते हैं , फल अधिक संख्या में गिरते हैं अपेक्षाकृत देर से पकने वाली जातियों के ।

( 6 ) खाद्य पदार्थ की दशा ( Nutritional Condition ) -


नत्रजन पर्याप्त मात्रा में देने से फल शीघ्र सैट होते हैं लेकिन बाद में गिरने लगते हैं ।

पौधों में कार्बोहाइडेट की पर्याप मात्रा होने पर ' जून ड्रोप ' को कम किया जा सकता है ।

( 7 ) गर्म हवायें ; लू ( Dessicating Winds ; Loo ) -


जब वातावरण में नमी कम होती है तथा गर्म हवायें चलती हैं, तो उत्स्वेदन की क्रिया बढ़ जाने से पौधों में पानी का ह्रास अधिक होता है ।

ऐसी परिस्थिति में आम तथा नींबू प्रजातियों के फल अधिक संख्या में गिरने प्रारम्भ हो जाते हैं ।

( 8 ) यांत्रिक क्षति ( Mechanical Injury ) -


जब पौधों में यांत्रिक क्षति हो जाती है, तो फल अधिक संख्या में गिरने लगते हैं ।

इस क्षति के लिये मनुष्य, जानवर तथा चिड़ियाँ जिम्मेदार होते हैं ।

( 9 ) कीट तथा बीमारियाँ ( Pests and Discases ) -


कीड़े, फफूंदी तथा बैक्टीरियल क्षति होने से फल गिरने लगते हैं ।

फलों के गिरने के क्या कारण होते है?


फलों का गिरना स्वास्थ्य जीवित ऊतियों के मध्य सम्बन्ध विच्छेद जो कि सामान्य बटवारे की दीवाल के मध्य भाग को ऐसे पदार्थों में बदल जाने से होता है जो पानी द्वारा फूल जाते हैं अथवा घुल जाते हैं तथा थोड़े से दबाव में फल गिर जाते हैं ।

सामान्यतः दो कारणों द्वारा फलों का गिरना देखा जाता है -


( अ ) मध्य लेमिला ( Middle lamella ) तथा इससे सटी हुई दूसरी पर्त जब रासायनिक बदलाव द्वारा स्थाई स्थान पर पृथक हो जाती है ।

( ब ) जब नई मेरिस्टमैटिक क्रियाशीलता एवं रासायनिक बदलाव द्वारा पैदा हई उतिकायें पृथक हो जाती हैं ।

फलों को गिरने से कैसे बचाएं ( Control Measures of Fruit Drop )


( 1 ) फलोद्यान की उचित देख रेख ( Proper after Care ) -


फलोद्यान में उचित समय पर खाद, निराई - गुडाई व काट - छाँट करना फलों को गिरने से बचाता है ।

गौड़ तत्व जैसे बोरोन इत्यादि की कमी से भी फल गिरने लगते हैं, जिसके लिए फल वृक्षों पर पर्णीय छिड़काव करते रहना चाहिए ।

( 2 ) समय पर सिंचाई करना ( Timely Irrigation ) -


भूमि में नमी की पर्याप्त मात्रा न होने से फल गिरने लगते हैं, अतः फल वृक्षों में समय पर पर्याप्त पानी देने से फलों के पतन में कमी आ जाती है

( 3 ) वायु वृत्ति के पौधे लगाना ( Planting of Wind Breaks ) -


फलोद्यान के चारों तरफ अथवा पश्चिम व दक्षिण दिशा में वायुवृत्ति के पौधों को लगाना चाहिए जिससे तेज व गर्म हवा एवं शीत लहर से होने वाला फलों का पतन रोका जा सकता है ।

( 4 ) उचित पादप सुरक्षा ( Proper Plant Protection ) -


फल वृक्षों पर बहुत से कीट व रोग लग जाते हैं जोकि फलों के पतन का कारण बनते हैं । अतः इन कीट व रोगों का उचित समय पर कीट एवं रोगनाशी रसायनों का छिडकाव करना चाहिए ।

( 5 ) परागदों को लगाना ( Planting of Pollinivers ) -


बहुत से फलों, जैसे - आम, सेब, पपीता, लोकाट, अलूचा आदि में परागण ठीक प्रकार से न होने से पुष्पों के निषेचन में बाधा आती है।

अतः ऐसे वृक्षों के उद्यान में परागदों को बीच - बीच में लगाना चाहिए ।

जैसे - डेलीशस वर्ग के सेब के बगीचे के गोल्डन डैलीशस व चौसा आम बाग में दशहरी जाति को परागद के रूप में लगाना चाहिए ।

( 6 ) वलयन ( Ringing ) -


बहुत से फलों, जैसे - अंगुर में फूल पैदा होने से पहले वलयन करने से फलों का पतन कम होता है । इसका एक मात्र कारण कार्बोहाइड्रेट व नत्रजन का अनुपात बढ़ जाना होता है ।

( 7 ) पादप नियत्रकों का छिड़काव ( Spraying of Plant Regulators ) -


फल वृक्षों में पादप नियंत्रकों के छिड़काव से फल पतन रोका जा सकता अथवा कम किया जा सकता है ।

विभिन्न फल वृक्षों में विभिन्न पादप नियंत्रक अलग - अलग सांधता में प्रयोग किये जाते हैं, जिनका विवरण नीचे दिया गया है

फलों को गिरने से बचाने के उपाय 


बनावटी हॉरमोन के छिड़काव से क्रोटन तथा होली की पत्तियों का गिरना काफी हद तक रोका जा सकता है, Nixon तथा गार्डनर द्वारा यही प्रभाव खजूर के फूलों में देखा गया ।

सेब में फलों के गिरने के कारण एवं उपाय


1939
में एल्फा नेप्थलीन एसिटिक एसिड ( NAA ), एल्फा नैथलीन एसीटामाइड ( NAD ) तथा ( NAA ) का मिटैलिक साल्ट ( Metallic Salt of NAA ) ।

फलों को गिरने से रोकने में सार्थक सिद्ध हुये । 2, 4 - D तथा 2, 4 - 5 ट्राईक्लोरो फिनोक्सी प्रोपाइनिक एसिड ( 2, 4, 5 - TP ) सेब तथा नाशपाती में फलों को गिरने से रोकने में बहत ही प्रभावकारी सिद्ध हये ।

सेब लिये 10 ppm सांधता वाला घोल अधिक लाभकारी सिद्ध हुआ ।

हालांकि यह सांधता सेब की जाति, तापक्रम, पकने के स्तर व दूसरे अन्य कारकों पर निर्भर करती है ।

नाशपाती में फलों के गिरने के कारण एवं उपाय


नाशपाती में पकने से पहले फलों को गिरने से रोकने के लिये 5 anm NAA छिड़कना पर्याप्त समझा जाता है ।

नाशपाती की Bartlett तथा Bose जातियों पर छिड़कने से अच्छे नतीजे प्राप्त हुये हैं ।

उत्तरी - पश्चिमी यू. एस. ए. में 1 - 2 - 5 ppr 2 , 4 - D Bartlet जाति में फल गिरने को रोकने में NAA की तरह प्रभावकारी सिद्ध हुई है ।

नींबू प्रजाति में फलों के गिरने के कारण एवं उपाय


नींबू प्रजाति के फलों में NAA छिड़कने से 91 के नतीजे प्राप्त नहीं हो सके ।

नींबू अनुसंधान केन्द्रों पर 2, 4 - D को अनुसंधान कार्य में किया गया ।

कैलिफोर्निया में 8 ppm. 2 , 4 - D नारंगी की वाशिंगटन नोवल, वैलैन्सिया पनि महानींबू तथा लेमन में सही समय पर छिड़कने से फलों का गिरना 30 - 60 % तक कम हुआ ।

आडू तथा खुबानी में फलों के गिरने के कारण एवं उपाय


इन दोनों फल वृक्षों में NAA तथा अन्य रासायनिक पदार्थ छिड़कने से कोई लाभ नहीं मिल सका ।

आशा की जाती है, कि अन्य हॉरमोन रसायन छिड़कने पर लाभ मिलेगा ।

आम में फलों के गिरने समस्या एवं समाधान


आम में फलों का गिरना
गर्म व तेज हवाओं परागण में कमी, पोषक पदार्थों की कमी व बीमारियों से गिरने लगते हैं ।

अतः फल पतन को रोकने हेतु बगीचे के चारों ओर वायु वृत्ति लगाना, समय पर पोषक पदार्थ देना व 2, 4 - D या एन. ए. ए. (20 पी० पी० एम०) छिड़कना चाहिए ।

बेर में फलों के गिरने के कारण एवं उपाय


इसमें फल पतन का कारण चूणिलआसिता का आक्रमण माना जाता है ।

0 . 2 प्रतिशत केराथेन का छिड़काव नवम्बर से फरवरी तक तीन बार करते हैं ।

20 - 30 पी० पी० एम० एन० ए० ए० का घोल दो बार अक्टूबर व नवम्बर में छिड़कते हैं ।

नारियल में फलों के गिरने के कारण एवं उपाय


इसमें फल पतन को रोकने हेतु बोरेक्स 0.2 प्रतिशत तथा 2,4 - डीo 20 पी० पी० एम० का छिड़काव करते हैं ।

अन्य पोधों में फल एवं फूलों का गिरना की समस्या एवं समाधान


चैरी तथा अलूचा पर रासायनिक पदार्थों के छिड़काव से आंशिक सफलता प्राप्त हुई ।

सूखे कड़े फलों में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हो सकी ।

उ० प्र० के सहारनपुर फल अनुसंधान केन्द्र पर आम में इसके ऊपर अनुसंधान कार्य किया गया तथा कुछ सफलता प्राप्त हुई ।

यहां आवश्यक होता है, कि छिड़काव करते समय फल के डंठल गीले हो जाने चाहिये ।

शीत ऋतु की तुलना में ग्रीष्म ऋतु में छिड़काव करना अधिक लाभकारी सिद्ध होता है ।