Kharpatwar - खरपतवार क्या है इनकी विशेषताएं एवं नियंत्रण की विधियां

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Kharpatwar - खरपतवार क्या है इनकी विशेषताएं एवं नियंत्रण की विधियां


खरपतवार ( kharpatwar ) -

ऐसा पौधा जो अवांछित स्थानों पर बिना बोए स्वयं ही उग जाता है और उस फसल को विभिन्न रूपों में क्षति पहुँचाकर उपज की हानि करता है खरपतवार (kharpatwar) कहलाता है ।

खरपतवार का उदहारण - गेहूँ की फसल में उगने वाला जंगली जई का पौधा खरपतवार का उदहारण है । 

नोट:- सभी खरपतवार अवांछित पौधे हैं लेकिन सभी अवांछित पौधे खरपतवार (weed in hindi) नहीं होते यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है ।


खरपतवार क्या है? | kharpatwar kya hain?

खरपतवार (kharpatwar) एक ऐसा अवांछित पौधा है जो बिना बोए ही खेतों तथा अन्य स्थानों पर उगकर तेजी से बढ़ता है और अपने समीप के पौधों की वृद्धि को दबाकर उपज क्षमता को घटा देता है जिससे फसलों की गुणवत्ता गिर जाती है ।

ऐसे पौधे जो खरपतवार के रूप में जाने जाते हैं मनुष्य की क्रिया - कलापों का प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं । खरपतवार एक फसलयुक्त खेत, सड़क के किराने, बांग, बगीचे तथा पार्क इत्यादि में कभी भी उगते हुये पाये जाते हैं ।


खरपतवार की परिभाषा लिखिए? | kharpatwar ki paribhasha

एक ऐसा पौधा जिसे उस स्थान पर नहीं उगना चाहिये उग जाता है खरपतवार (kharpatwar) कहा जाता है ।

पीटर के अनुसार - “एक ऐसा पौधा जिसकी हानि करने की क्षमता उसकी लाभ करने की क्षमता से अधिक होती है खरपतवार कहलाता है ।"

"A weed is a plant whose potentialities for harm are greater than its potentialities for good.


खरपतवार किसे कहते है? | kharpatwar kise kehte hain?

ये अवांछित अनावश्यक होते हैं जो मनुष्य एवं पशुओं के लिये हानिकारक होते हुए मनुष्य की गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, खरपतवार (kharpatwar) ऐसे पौधों का उगना निश्चित रूप से चिंता का विषय है ।

कृषिकृत एवं अकृषिकृत क्षेत्रों में ख पतवारों का उगना एक गम्भीर समस्या है । सघन खेती में उर्वरक, सिंचाई और बहुफसली खेती आदि के प्रयोग से खरपतवारों की समस्या और बढ़ी है ।

अकृषिकृत क्षेत्रों में भी खरपतवार विभिन्न स्थानों जैसे जलीय वातावरण, वनों, रेलवे लाइनों सड़क मार्गों हवाई अड्डों, औद्योगिक स्थनों एवं सौन्दर्यता के स्थानों में उगते हुये पाए जाते हैं ।


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खरपतवारों का वर्गीकरण उदाहरण सहित कीजिए? | classification of weed in hindi


खरपतवारों का वर्गीकरण निम्न प्रकार है - 

  • एकवर्षीय खरपतवार ( Ananual Weeds ) - वे‌ सभी खरपतवार जो अपना जीवन चक्र एक वर्ष में पूरा करते है एकवर्षीय खरपतवार कहलाते है । एकवर्षीय खरपतवार के उदाहरण - बथुआ (chinopodium album), कृष्णनील (anagallis arvensis), कनकुआ (commelina benghalensis)
  • द्विवर्षीय खरपतवार ( Biennial weeds ) - वे‌ सभी खरपतवार जो अपना जीवन चक्र एक से दो वर्ष में पूरा करते है द्विवर्षीय खरपतवार कहलाते है । द्विवर्षीय खरपतवार के उदाहरण - जंगली गाजर (wild carrot), जंगली गोभी (wild cabbage)
  • बहुवर्षीय खरपतवार ( Perennial weed ) - वे‌ सभी खरपतवार जो अपना जीवन चक्र दो या दो से अधिक वर्षों में पूरा करते है बहुवर्षीय खरपतवार कहलाते है । बहुवर्षीय खरपतवार के उदाहरण - मौथा (cyperus rotundus), हिरनखुरी (convolvulus arvensis), दूबघास (cynodon dactylon)


खरपतवार के अन्य प्रमुख उदाहरण -

  • खरीफ की फसलों के खरपतवार धान - मौथा, जंगली धान, सांवा, कौंदो, भंगछा, कनकुआ ।
  • खरीफ की फसलों के खरपतवार मक्का - हजारदाना, मौथा, गुम्मा, बरू, दूब चौलाई ।
  • खरीफ की फसलों के खरपतवार सोयाबीन, मूंग, अरहर, मूंगफली - हजारदाना, चौलाई, दूब, मौथा गुम्मा, हुलहुल ।
  • रबी की फसलों के खरपतवार चना, मटर, आलू, सरसो - चटरी - मटरी, गेगला, कृष्णनील, कंटीली, प्याजी, दूब, मौथा, बथुआ ।
  • रबी की फसलों के खरपतवार गेहूँ - चटरी - मटरी मुनमुना मौथा, सैंजी, हिरनखुरी, कृष्णनील दूब, बथुआ ।
  • रबी की फसलों के खरपतवार बरसीम - कृष्णनील, कंटीली, दूब, मौथा व कासनी ।


खरपतवारों के अन्य प्रकार | types of weeds in hindi


खरपतवार के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है -

  • सापेक्ष खरपतवार ( Relative weed )
  • नकलची खरपतवार ( Mimicry weeds )
  • जलीय खरपतवार ( Aquatic weeds ) अहितकारी खरपतवार ( Noxious weeds )
  • अविकल्पी खरपतवार ( Obligate weeds )


1. सापेक्ष खरपतवार किसे कहते है? | relative weed in hindi

ऐसे पौधे होते हैं । जो मुख्य फसलों के पौधों के साथ बिना बोए ही उग जाते हैं । इस वर्ग में फसलों के वे पौधे सम्मिलित हैं जो बिना बोए ही मुख्य फसल में उग जाते हैं ।

सापेक्ष खरपतवार के उदाहरण - गेहूँ के खेत में जौं के पौधे ।, चने के खेत में गेहूँ के पौधे ।


2. नकलची खरपतवार किसे कहते है? | mimicry weed in hindi

ऐसे खरपतवार जो फसल के पौधे से अपनी बाह्य अकारिकी में एकसमान होते हैं व फसल के पौधों तथा इस खरपतवार में अंतर करना कठिन हो जाता है, नकलची खरपतवार कहे जाते हैं ।

नकलची खरपतवार के उदाहरण गेहूँ की फसल में जंगली जई ( Avena fatua ), गेहूँ की फसल में गेहूँ का मामा ( Phalaris minor )


3. जलीय खरपतवार किसे कहते है? | aquatic weeds in hindi

ऐसे स्थानों पर उगने वाले खरपतवार जहाँ पूरे वर्ष भर पानी भरा रहता है, जलीय खरपतवार कहे जाते हैं ।

जलीय खरपतवार के उदाहरण - जलकुम्भी, समुद्रसोख व हाइड्रिल आदि ।


4. अहितकारी खरपतवार किसे कहते है? |  noxious weeds in hindi

ऐसे खरपतवार जो अवांछनीय, शरारती व जिनका नियंत्रण असाध्य होता है  अहितकारी खरपतवार कहे जाते हैं ।

अहितकारी खरपतवार के उदाहरण - कांस, दूबघास, मौथा व लेन्टाना आदि ।


5. अविकल्पी खरपतवार किसे कहते है? | obligate weeds in hindi

ऐसे खरपतवार जो अव्यवस्थित भूमियों में उगते हैं और अन्य पौधों से प्रतियोगिता के योग्य नहीं होते, अविकल्पी खरपतवार कहलाते हैं ।

अविकल्पी खरपतवार के उदाहरण - हिरनखुरी ।


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खरपतवारों की मुख्य विशेषताएँ लिखिए? | main characteristics of weeds in hindi

आदिकाल से पौधे मनुष्य को प्रकृति द्वारा प्रदत्त बहुमूल्य धरोहर है । सम्पूर्ण विश्व में तीन लाख से अधिक पौधों की जातियाँ हैं ।

इनमें से लगभग तीन हजार जातियाँ मनुष्य जति के लिये आर्थिक रूप से लाभकारी है आर्थिक महत्व वाले पौधों की जातियों के साथ - साथ कुछ अन्य पौधे भी उगकर प्रतिस्पर्धा करते हैं ।

खरपतवारों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है -

  • कुछ खरपतवारों की बीज उत्पादन क्षमता बहुत अधिक होती है । जैसे — बथुआ का एक पौधा एक वर्ष में लगभग 70,000 बीज पैदा करता है ।
  • खरपतवारों के बीजों का अंकुरण शीघ्र एवं तेजी से होता है । खरपतवारों के बीजों अंकुरण व वृद्धि को तापमान प्रोत्साहित करता है । रबी की फसलों एवं उसमें पाये जाने वाले खरपतवारों के लिये 5°-22°C व खरीफ के खरपतवारों के लिये 19°C-30°C तापमान के उपयुक्त होता है ।
  • कुछ खरपतवारों की जड़े लम्बी और विकसित हो जाती है । उदाहरण - कांस व हिरनखुरी खरपतवारों की जड़े भूमि में 7 मीटर तक की गहराई तक पहुँच जाती है ।
  • कुछ खरपतवार फसल के पौधों के समान होते हैं अतः खरपतवार और फसल के पौधों को पहचानना कठिन हो जाता है । जैसे - गेहूँ की फसल में जंगली जई का पौधा ।
  • खरपतवार का पौधा किसी भी फसल के पौधों के साथ स्थान, प्रकाश, वायु, पोषक तत्व मृदा नमी व 0, के लिये प्रतिस्पर्धा करता है ।
  • कुछ खरपतवारों के बीजों का आकार एवं रंग फसल के पौधे के बीजों के समान होते हैं जिससे अन्तर करना सरल नहीं होता ।
  • स्वभाव से कठोर होते हैं व प्रतिकूल परिस्थितियों में उगने की क्षमता रखते हैं ।
  • खरपतवार के पौधे पर कीटों व बीमारियों का प्रभाव कम होता है ।
  • कुछ खरपतवार दुर्गन्धयुक्त एवं विषैले होते हैं जैसे धतूरा व हुलहुल ।
  • कुछ खरपतवारों के बीजों पर पंख, बाल व कांटे होते हैं जो इनके बीजों के प्रसारण में सहायक होते हैं । उदहारण - आक, सत्यानाशी व गेहूँसा आदि ।


खरपतवार मनुष्यों एवं पशुओं के लिये हानिकारक है कैसे?


खरपतवारों की प्रमुख हानियां निम्नलिखित है -

  • मनुष्य स्वास्थ्य एवं उनकी कार्यकुशलता पर खरपतवारों की उपस्थिति का अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
  • खरपतवारों के कारण मनुष्य की त्वचा में खुजली, स्वभाव नै चिड़चिडापन, एलर्जी आदि रोग हो जाते हैं ।
  • कुछ विशैले खरपतवारों को ग्रहण करने पर मनुष्य। की मृत्यु तक हो सकती है । उदाहरण के लिये मकाय (solanum nigrum) विषैला होने के कारग बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है ।
  • कुछ खरपतवारों का चारे के रूप में प्रयोग करने से दुधारु पशुओं के दूध के स्वाद में परिवर्तन आ जाता है ।
  • कुछ खरपतवार विषैली प्रकृति के होते हैं । पशुओं द्वारा इनको खाए जाने पर मृत्यु भी हो सकती है ।
  • खरपतवार युक्त चारा भूखे पशु द्वारा खाए जाने पर पशु कमजोर हो जाता है और दूध दुर्गन्धयुक्त हो जाता है ।


फसल - खरपतवार प्रतियोगिता से आप क्या समझते है? | crop weed competition in hindi

फसल के पौधों व खरपतवारों में सौर - ऊर्जा, वायु, स्थान, समय, मृदा नमी, पोषक तत्व व ऑक्सीजन के लिये संघर्ष होता है । किन्हीं दो पौधों में जब तक संघर्ष नहीं होता जब तक कि उनकी आवश्यकता से अधिक पोषक तत्व, जल और सौर ऊर्जा की उपलब्धता बनी हुई है । किसी भी एक कारक के आवश्यकता से कम होने पर संघर्ष शुरू हो जाता है । 

इस प्रकार यदि भूमि में पोषक तत्वों व जल की अधिकता है तो पौधों की वृद्धि प्रकाश पर निर्भर करती है । जल व प्रकाश की अधिकता में व पोषक तत्वों की कमी होने पर खरपतवार व फसल के पौधों में पोषक तत्वों की पूर्ति हेतू संघर्ष शुरू हो जाता है । इस प्रकार खरपतवार का फसल के पोधे के साथ सौर - ऊर्जा, वायु, पोषक तत्व स्थान व मृदा नमी आदि के लिये संघर्ष करना फसल खरपतवार प्रतियोगिता (crop weed competition in hindi) कहलाता है ।


फसल खरपतवार प्रतियोगिता को प्रभावित करने वाले कारक कोन से है?

फसल खरपतवार प्रतियोगिता को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं जिनमें मृदा - नमी पोषक तत्व, सौर ऊर्जा, स्थान, समय व ऑक्सीजन की पूर्ति प्रमुख हैं ।


इन कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है -

  • पोषक तत्व ( Nutrients ) - फसल खरपतवार प्रतियोगिता में पोषक तत्वों के लिये संघर्ष अति महत्वपूर्ण है । पौधों की वृद्धि में आवश्यक पोषक तत्व के लिये खरपतवार फसल के पौधों के साथ स्पर्धा करते हैं । किसी भी तत्व की कमी की अवस्था में फसलों व खरपतवारों के बीच उस तत्व को ग्रहण करने के लिये प्रतियोगिता प्रारम्भ हो जाती है जिससे फसल की वृद्धि एवं उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । एक आंकलन के अनुसार खरपतवार भूमि से फसलों की वृद्धि के लिये आवश्यक पोषक तत्वों जैसे - नाइट्रोजन - 47%, फॉस्फोरस 42% पोटेशियम 55% कैल्शियम 39% और मैग्नीशियम 24% ग्रहण करते हैं । चौलाई खरपतवार की जातियाँ प्रायः अपने शुष्क पदार्थ में 3% से अधिक नाइट्रोजन संचित करती है । बथुआ और कुल्फा खरपतवारों के शुष्क पदार्थ में 1.3% पौटेशियम पाया जाता है । खरपतवारों के शुष्क पदार्थ का उत्पादन 1-10 टन/हैक्टेयर तक होता है ।
  • मृदा नमी ( Soil moisture ) - सामान्यतः फसल व खरपतवारों के बीच होने वाली प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करने वाले कारकों में मृदा नमी एक महत्वपूर्ण कारक है । शुष्क व अर्द्धशुष्क भूमियों में नमी के कारण स्थिति और भी गम्भीर हो जाती है । सामान्यतः खरपतवार, फसल के पौधों की अपेक्षा अधिक मात्रा में जल का उसवेदन करते हैं । इसीलिए शुष्क कृषि वाले क्षेत्रों में खरपतवार युक्त खेत से खरपतवार रहित खेत की अपेक्षा वास्तविक वाष्पी वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है । सामान्यतः भूमि की प्रथम 15 सेमी. की गहराई से मुख्य रूप से व 90 सेमी. की गहराई तक खरपतवार भूमि से नमी ग्रहण करते हैं ।
  • सौर - ऊर्जा ( Solar - energy ) - अन्य कारकों की भांति सूर्य से प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा भी फसल खरपतवार प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करती है । खरपतवार के पौधों की ऊँचाई सौर ऊर्जा के प्रयोग करने के लिये फसल के पौधों के साथ संघर्ष करने वाला प्रमुख कारक है । भूमि में नमी व पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा व सौर - ऊर्जा की उपस्थिति में खरपतवार फसल के पौधों से अधिक वृद्धि करते हैं और उनकी ऊँचाई तेजी से बढ़ती है । सौर ऊर्जा के लिये खरपतवारों द्वारा प्रतिस्पर्धा फसलों के बीजांकुर के साथ ही शुरू हो जाती है । यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है जब एक पौधे की छाया दूसरे पौधे पर पड़ती है तो प्रकाश के अधिक होने पर भी कोई लाभ नहीं होता ।


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फसलों को खरपतवार रहित रखने के लिये खरपतवारनाशियों का प्रयोग की क्रान्तिक अवस्थाएँ

फसलों को खरपतवार रहित बनाने के लिये खरपतवार नाशियों का उनकी क्रान्तिक अवस्था (critical stage) पर प्रयोग करना अति महत्वपूर्ण है । ऐसी स्थिति में खरपतवारों को उनकी प्रारम्भिक वृद्धि से ही नियन्त्रण करने में सहायता मिलती है । विभिन्न खरपतवार नाशियों के विभिन्न फसलों में प्रयोग का समय भी अलग - अलग होता है । खरपतवारों की क्रांतिक अवस्था में रसायनों का प्रयोग कर इन पर आसानी से नियन्त्रण किया जा सकता है ।


खेतों में खरपतवारनाशियों का प्रयोग निम्न क्रांतिक अवस्थाओं पर किया जाता है -

  • फसलों की बुवाई से पूर्व ( Pre - sowing application ) - खेत में किसी फसल की बुवाई से पूर्व ही खरपतवारनाशियों का प्रयोग करना चाहिये । ऐसा करने से बोई गई फसल के अंकुरण से पूर्व खरपतवारों के निर्गमन, अंकुरण व उनके स्थापन में क्षीणता आ जाती है और फसल में सफलता पूर्वक खरपतवार को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है ।
  • निर्गमन से पूर्व ( Pre - emergence ) - इस समय पर खरपतवार नाशियों का प्रयोग फसल को बुवाई के बाद बीजाकुरों के निग्रमन और अंकुरण से पूर्व किया जाता है । खेत में यह स्थिति फसल, खरपतवार और फसल व खरपतवार के निर्गमन से पूर्व होती है ।
  • निर्गमन के पश्चात् ( Post emergence ) - खेत में उगाई गई फसल व खरपतवार दोनों के निर्गमन एवं अंकुरण के पश्चात् खरपतवारनाशी का प्रयोग क्रांतिक अवस्था पर किया जाता है ।


खरपतवार नियन्त्रण के सिद्धान्त लिखिए? | principles of weed control in hindi

खरपतवारों को नष्ट करने के लिये प्राचीनकाल से ही अपनाई जाने वाली भू परिष्करण, फसल उगाने की प्रणाली व प्रबन्धन आदि प्रमुख विधियाँ थी । ये विधियाँ खरपतवारों के जीवन चक्र से सम्बन्धित हैं ।

ये विधियाँ खरपतवारों की कुछ विशेषताओं जैसे खरपतवारों का ओज (vigor) खरपतवारों की प्रतियोगिता क्षमता और खरपतवारों की अतिजीवन क्षमता द्वारा नियन्त्रित होती हैं ।

उपरोक्त विधियों को विभिन्न कारक जैसे खरपतवारों का स्वभाव फसल उगाने की प्रणाली, खरपतवारों का फैलाव और उनकी प्रबलता, यन्त्रों की उपलब्धता और कृषि फार्म की आर्थिक स्थिति आदि प्रभावित करते हैं ।

वर्तमान समय में खरपतवारों को नष्ट करने के लिये उपरोक्त क्रियाओं के अतिरिक्त खरपतवारनाशियों का विकसित होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है । इन खरपतवारनाशियों के गुणों और कार्यों की सम्पूर्ण जानकारी, खरपतवारो के जीवन चक्र उनकी संघर्ष क्षमता ओर खरपतवार (kharpatwar) व फसलों के पारिस्थितिक सम्बन्धों का ज्ञान होना आवश्यक है । इन खरपतवारनाशियों को अन्य कृषण क्रियाओं के साथ समन्वित कर खरपतवार नियन्त्रण प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है ।

सफलतापूर्वक खरपतवार नियन्त्रण हेतु खरपतवारों के स्वभाव, जीवनचक्र किसी रसायन के प्रति उनकी सहनशीलता, उसके बीजों की सुषुप्तावस्था, प्रतिकूल अवस्थाओं में अंकुरण की क्षमत, बीजों का प्रकीर्णन एवं वितरण आदि का सम्पूर्ण ज्ञात होना आवश्यक है ।


खरपतवार नियंत्रण की विभिन्न विधियां कोन-कोन सी है वर्णन कीजिए? | methods of weed control in hindi

खरपतवारों की सघनता को शिथिल करने की प्रक्रिया खरपतवार नियंत्रण कहलाती है अथवा जिन तरीकों से खरपतवारों को नष्ट किया जाता है उन्हें खरपतवार नियंत्रण की विधियां कहा जाता है ।

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खरपतवारों का नियंत्रण कैसे करते है विधियां लिखिए


खरपतवार नियंत्रण की प्रमुख विधियां निम्नलिखित है -

  • भौतिक विधियां ( Physical Methods )
  • सस्य वैज्ञानिक विधियां ( Agronomical Methods )
  • जैविक विधियाँ ( Biological Methods )
  • रासायनिक विधियां ( Chemical Methods )
  • अन्य विधियांं ( Other Methods ) 


खरपतवार नियंत्रण की विधियां | methods of weed control in hindi


1. भौतिक विधियां ( Physical or mechanical methods )

इनको यान्त्रिक विधियाँ भी कहते हैं । खरपतवार नियन्त्रण की ये विधियाँ प्राचीनकाल से प्रचलित है । वर्तमान समय में इन विधियों का प्रयोग पौधशाला, लॉन तथा फूलों की क्यारियों में खरपतवार नियन्त्रण हेतु किया जाता है ।

विभिन्न प्रकार के यन्त्र जैसे खुरपी, फावड़ा, खुदाई, फोर्क, हैण्ड हो आदि का प्रयोग खरपतवारों को नष्ट करने के लिये किया जाता है ।

खरपतवारों के नियन्त्रण हेतु निम्न भौतिक विधियाँ प्रयोग में लाई जाती है -

  • हाथ से उखाड़ना ( Hand Pulling )
  • निराई गुड़ाई करना ( Hoeing )
  • मोवर का प्रयोग ( Use of mover )
  • जल भराव ( Flooding )
  • मल्च का प्रयोग ( Use of Mulch )
  • भू - परिष्करण क्रियाओं के द्वारा ( By tillage practices )
  • भूमि की सतह पर आग से जलाना ( Burning on soil surface )


2. सस्य वैज्ञानिक विधियाँ ( Agronomical methods )

कृषि के प्रारम्भ से ही खरपतवारों को नष्ट करने की सस्य वैज्ञानिक विधियाँ भी किसी ना किसी रूप में प्रयोग की जाती रही है । सस्य विधियों के प्रयोग से खरपतवार नियन्त्रण करने पर पौधों की वृद्धि खरपतवारों की तुलना में तेजी से होती है जिससे खरपतवारों के पौधों की वृद्धि शिथिल हो जाती है तथा वे ढक जाते हैं । इन विधियों में उत्तम फसल प्रबन्ध से सम्बन्धित सभी उपाय सम्मिलित होते हैं । अतः इन्हें कृषिकृत विधियाँ अथवा कृषण क्रियाओं सम्बन्धी विधियाँ भी कहते हैं ।

खरपतवार नियन्त्रण सस्य वैज्ञानिक विधियाँ निम्नलिखित हैं -

  • फसल चक्र ( Crop rotation )
  • फसलों का चुनाव ( Selection of crops )
  • भू - परिश्करण क्रियाएँ ( Tillage proctices )
  • पलेवा सिंचाई ( Palewa irrigation )
  • बुवाई का समय ( Time of sowing )
  • बुवाई की गहराई ( Depth of sowing )
  • बीजदर एवं अन्तरण ( Seed rate and spacing )
  • कार्बनिक खादों का प्रयोग ( Use of organic manures )
  • भूमि सुधारकों का प्रयोग ( Use of Soil Amendments )
  • उर्वरक प्रयोग करने की विधि ( Method of Fertilizer Application )
  • भूमि को परती छोड़ना ( Fallowing of Land )
  • परती भूमि में पानी भरना ( Flooding of Fallow lands )
  • खेत की तैयारी एवं अन्तरासस्यन ( Preparation of field and intercropping )
  • फसल कटाई की विधि ( Method of Crop Harvesting )


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खरपतवार नियन्त्रण की सस्य वैज्ञानिक विधियों का वर्णन कीजिये? | agronomical methods of weed control in hindi

कृषि के प्रारंभ से ही खरपतवारों को नष्ट करने की विभिन्न कृषिकृत विधियों का प्रयोग किसी ना किसी रूप में किया जाता रहा है । इन विधियों को अपनाने से फसल के पौधों की वृद्धि खरपतवारों की तुलना में शीघता से होती है जिससे खरपतवार फसल के पौधों से ढ़ब जाते हैं और उनकी वृद्धि शिथिल हो जाती है । कृषिकृत विधियों में उत्तम फसल प्रबन्ध से सम्बन्धित सभी उपाय सम्मिलित होते हैं इसलिये इन विधियों को सस्य वैज्ञानिक विधियाँ (agronomical methods in hindi) कहा जाता है ।


खरपतवार नियन्त्रण की कृषिकृत विधियाँ निम्न प्रकार है -

  • फसलों का चुनाव ( Selection of crops ) - खरपतवार नियंत्रण हेतु ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिये जिसमें विभिन्न गुणों का समावेश हो । फसल का बीज सस्ता होना चाहिये, कम समय में तेजी से वृद्धि करने वाला होना चाहिये व फसल के पौधों में कीटों व बीमारियों को सहन करने की क्षमता होनी चाहिये । फसलों की जड़े गहरी व फैलने वाली होनी चाहिये । फसलों की उपरोक्त विशेषताओं को ध्यान में रखकर फसलों का चुनाव करना चाहिये ।
  • भू - परिष्करण क्रियाएँ ( Tillage practices ) - खरपतवारों पर नियन्त्रण के लिये गहरी व बार - बार कृषि क्रियाएँ नहीं करनी चाहिये । यद्यपि फसलों की वृद्धि के लिये गहरी व बार - बार जुताई लाभदायक होती है, परन्तु गहरी और बार - बार जुताई करने से मिट्टी में मिले हुए खरपतवारों के बीज खेत की ऊपरी सतह पर आकर अनुकूल परिस्थितियों में बार - बार अंकुरित होते रहते हैं ।
  • कार्बनिक खादों का प्रयोग ( Use of organic manures ) - कार्बनिक खाद सड़ने व गलने के पश्चात कार्बनिक अम्ल का निस्तारण करते हैं । यह अम्ल खरपतवारों की वृद्धि को शिथिल कर देता है । सामान्य परिस्थितियों में कार्बनिक खादों के प्रयोग से भूमि में उगने वाली फसलों के लिये पर्याप्त वायु संचार, उपयुक्त भूमि संरचना तथा अनुकूल नमी बनी रहती है । 
  • फसल चक्र ( Crop Rotation ) - उचित प्रकार से नियोजित किया हुआ फसल चक्न खरपतवारों की संख्या को कम कर देता है । फसल चक्र में प्रतियोगी फसलों जैसे लोबिया,ज्वार और सनई का प्रयोग, उगने वाले खरपतवारों को सूर्य के प्रकाश से वंचित कर देता है इसी प्रकार गन्ना, आलू और अधिकतर सब्जियों वाली फसलों के बीच में कृषण क्रियाओं के करने से खरपतवारों की संख्या घट जाती है । फसल की वृद्धि के लिये अनुकूल वातावरण बनाकर एक उत्तम फसल चक्र द्वारा सफलतापूर्वक खरपतवारों को कम किया जाता है ।
  • भूमि को परती छोड़ना ( Fallowing of Land ) - खेती में खरपतवार नियन्त्रण करने के लिये भूमि को परती छोड़ना एक प्राचीन विधि है । भूमि को परती छोड़ने का उद्देश्य ग्रीष्मकालीन मौसम में खेत की जुताई द्वारा खरपतवारों को सूखा कर नष्ट कर देना होता है । भूमि को परती छोड़कर खरपतवारों पर नियन्त्रण करने हेतु खेत की बार - बार जुताई करना आवश्यक है । परती भूमि की जुताई न करने से उसमें भारी मात्रा में खरपतवार उग जाते हैं । अतः खेत को बिना जुताई के छोड़ना हानिकाकर है । गर्मी के मौसम में तापमान अधिक होता है और भूमि में नमी की कमी आती है, ऐसे समय पर बहुवर्षीय खरपतवारों को भी नष्ट करने में सहायता मिलती है जैसे - दूबघास आदि ।
  • खेत की तैयारी ( Preparation of field ) - खेत को भली भाँति तैयार करने में बार - बार जुताई की आवश्यकता होती है जिससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं । अच्छी प्रकार से तैयार किये गए खेत में फसल के बीजों का अंकुरण अधिक होता है । पौधों का तीव्र वृद्धि होती है और अनुकूल परिस्थितियों में ये पौधे खरपतवारों से प्रतिस्पर्धा करते हैं और उन्हें दबाते हैं ।
  • पलेवा सिचाई ( Palewa Irrigation ) - सभी फसलों की बुवाई का समय निर्धारित होता है । बुवाई से दो सप्ताह पूर्व खेत में पलेवा सिंचाई करते हैं । ऐसा करने से पलेवा के पश्चात अधिकतर खरपतवारों का अंकुरण तुरन्त हो जाता है । खेत की तैयारी के समय ये सभी खरपतवार नष्ट हो जाते हैं । वर्षा प्रारम्भ होने से पूर्व पलेवा करके बोई गई फसल वर्षा होने पर खरपतवारों को दबाकर चलती है ।
  • बुवाई का समय ( Time of Sowing ) - सभी प्रकार की फसलों की निर्धारित समय पर बुवाई करने से खरपतवारों पर नियन्त्रण किया जा सकता है । यदि निश्चित समय से पूर्व या उपरन्त फसल उगाई जाती है तो खरपतवारों की संख्या में वृद्धि हो जाती है ।
  • बुवाई की गहराई ( Depth Sowing ) - शुष्क क्षेत्रों में भूमि में कम नमी के कारक अंकुरण कम होता है । अतः फसल के बीजों की बुवाई उपयुक्त गहराई पर करने से बीज अंकुरण अधिक होता है । ऐसा करने से बीजांकुर को भूमि से बाहर निकालने के लिये पर्याप्त नमी उपलब्ध रहती है ।
  • बीज दर ( Seed Rate ) - विभिन्न फसलों को उगाने के लिये बीज दर पूर्व से निर्धारित होता है । प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों की संख्या अधिक होने से खरपतवार फसल सकता है । के पौधों के नीचे दब जाते हैं । अतः बीज दर में वृद्धि करने से खरपतवारों को दबाया जाता है ।
  • अन्तरण ( spacing ) - अधिक बीजों का प्रयोग प्रति इकाई क्षेत्रफल में करने से पौधों की संख्या भूमि पर अधिक हो जाती है, जिससे खरपतवार फसल के पौधों के नीचे दब जाते हैं । पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे के बीच की दूरी कम रखनी चाहिये जिससे उगने वाले खरपतवार पोषक तत्वों, प्रकाश तथा वायु आदि से वंचित रह सके ।
  • हरी खाद का प्रयोग ( Use of Green Manure ) - खरपतवार नियन्त्रण हेतु कुछ निश्चित परिस्थितियों में भूमि को परती छोड़ने की अपेक्षा हरी खाद को उगाना एक उत्तम विधि है । हरी खाद की फसलों में प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों की संख्या अधिक होती है और ये कम ही समय में तेजी से वृद्धि करती है । जिससे खरपतवारों को दबा लेती है । साथ ही साथ जब हरी खाद को पलटकर दबाया जाता है तो इसमें बहुत से खरपतवार भी दबकर नष्ट हो जाते हैं । खेत में हरी खाद उगाने से भूमि की उर्वरता में सुधार होता है जिससे फसल के पौधे खरपतवारों से अच्छी प्रकार संघर्ष करते हैं ।

  • भूमि सुधारकों का प्रयोग ( Use of Soil Amendments ) - समस्याग्रस्त क्षेत्रों की भूमियों में विभिन्न प्रकार के भूमि सुधारकों का प्रयोग खरपतवार नियन्त्रण की दृष्टि से लाभप्रद रहता है । उदाहरणार्थ अम्लीय भूमियों में चूने का प्रयोग करके भूमि को सुधारा जाता है जिससे उगाई जाने वाली फसलों की अच्छी वृद्धि होने के कारण खरपतवारों के पौधे दव जाते हैं । इसी प्रकार लवणीय व क्षारीय भूमियों में जिप्सम का प्रयोग किया जाता है जिसके प्रयोग से इन भूमियों के गुणों में सुधार होता है । ऐसी भूमियों में उगने वाली फसलों की तीव्र वृद्धि होती है और खरपतवारों पर नियन्त्रण होता है । इस प्रकार लवणीय व क्षारीय भूमियों के खरपतवारों को जिप्सम के प्रयोग से कुछ सीमा तक नियन्त्रित किया जा सकता है ।
  • परती भूमि में पानी भरना ( Flooding in fallow Lands ) - परती भूमि में खरपतवार नियन्त्रण के लिये दो तीन माह तक उसमें लगातार पानी भरने से खरपतवारों को नष्ट किया जा सकता है ।
  • उर्वरक प्रयोग करने की विधि ( Method of Fertilizer Application ) - फसल के बीजों व पौधों के पास उर्वरकों का प्रयोग करने से अधिक मात्रा में पौधों की जड़ो के द्वारा पोषक तत्वों को ग्रहण किया जाता है और पौधे शीघ्रता से वृद्धि करने के कारण खरपतवारों की वृद्धि को दबा लेते हैं ।
  • फसल कटाई की विधि ( Method of Crop Harvesting ) - फसलों की कटाई करते समय उनकी जड़ो व तनों का कुछ हिस्सा खेत में छोड़ देना चाहिये । पौधों के ये अवशेष भूमि में कृत्रिम आवरण का कार्य करते हैं जिससे खरपतवारों के अंकुरण में बाधा उत्पन्न होती है ।
  • अन्तरासस्यन ( Intercropping ) - कुछ फसलों की बुवाई में एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी अधिक होती है । इन पंक्तियों के बीच में किसी दूसरी फसल के बोने से खेत में खरपतवारों की वृद्धि को नियन्त्रित किया जा सकता है ।


3. रसायनिक विधियाँ ( Chemical Methods ) -

प्राचीन समय से खरपतवारों पर नियन्त्रण हेतु रसायनों का प्रयोग किया जाता है । प्राकृतिक वनस्पति पर, सड़को के किनारे, बाढ़ की लाइनों और पैदल चलने के रास्तों के आस - पास नियन्त्रण हेतु विभिन्न प्रकार के पदार्थ जैसे लवण, राख, व्यर्थ पड़े पदार्थ और उद्योग धन्धों से निकलने वाले कूड़े कचरे का प्रयोग किया जाता था ।

हमारे देश में रसायनिक खरपतवार नियन्त्रण लगभग सन् 1945 में प्रारम्भ हुआ । इस समय लगभग 400 खरपतवारनाशी विभिन्न कम्पनियों द्वारा निर्मित कर बिक्री हेतु बाजार में उपलब्ध है ।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (I.C.A.R.) नई दिल्ली द्वारा खरपतवार नियन्त्रण विषय पर भारतीय खरपतवार नियन्त्रण संस्थान (I.I.W.S) भोपाल मध्य प्रदेश में स्थापित किया जा चुका है । इस संस्थान की देखरेख में विभिन्न राज्यों में खरपतवारों से सम्बन्धिन समस्याओं व नए - नए खरपतवारनाशियों का प्रयोग आदि विषयों पर विकास कार्य प्रगति पर है ।


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खरपतवार नियन्त्रण की विभिन्न रासायनिक विधियाँ निम्नलिखित हैं -

( i ) वरणात्मक खरपतवारनाशी ( Selective Herbicides ) -

( a ) पर्णीय छिड़काव ( foliage Application )
( b ) भूमि प्रयोग ( Soil Application )


( ii ) अवरणात्मक खरपतवारनाशी ( Non selecive Herbicides ) -

( a ) पर्णीय छिड़काव ( foliage Application )
( b ) भूमि प्रयोग ( Soil Application )


( i ) वरणात्मक खरपतवारनाशी ( Selective Herbicides ) -

  • ये खरपतवारनाशी कुछ विशेष प्रकार के खरपतवारों पर ही अपना प्रभाव दिखाते है ।
  • ये फसल के पौधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते ।इनका प्रयोग प्रमुखतः कृषित क्षेत्रों (croplands) में किया जाता है ।
  • इनकी क्रियाशीलता (reactiveness) विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है ।
  • इन खरपतवारनाशियों में ऐसा नहीं होता है ।
  • इस वर्ग में पौटेशियम सायनेट, नाइट्रोफेन, अमोनियम सल्फामेट, पैराकुआट व डाईकुआट आदि सम्पर्क खरपतवारनाशी सम्मिलित है ।


( ii ) अवरणात्मक खरपतवारनाशी ( Non selecive Herbicides ) -

  • ये खरपतवारनाशी सभी प्रकार के खरपवतारों को नष्ट करने के काम में आते हैं ।
  • ये फसल के पौधे को भी नष्ट कर देते है ।
  • ये खरपतवारनाशी अकृषित क्षेत्रों (non - crop lands) में प्रयोग किये जाते हैं ।
  • इनकी क्रियाशीलता का समय कुछ घंटों से कई वर्षों तक होता है ।
  • इस वर्ग के खरपतवारनाशी भूमि में प्रयोग करने पर मृदा निर्जीमीकरक (soil sterilants) कहलाते हैं ।
  • इस वर्ग में PCP पैराकुआट, डाईकुआट, weed oil व DNBP आदि सम्पर्क खरपतवारनाशी सम्मिलित हैं ।


रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियन्त्रण के लाभ, हानि तथा भविष्य की विवेचना कीजिये?

भारत में रसायनों का प्रयोग खरपतवारनाशियों के रूप में सन 1944 में प्रारम्भ हुआ । इस समय लगभग 400 खरपतवारनाशी विभिन्न कम्पनियों द्वारा निर्मित किये जा चुके हैं और प्रयोग के लिये बाजार में उपलब्ध है ।

रसायनिक खरपतवार नियन्त्रण का वृहद् स्तर पर लाभकारी प्रयोग करने के लिये खरपतवारनाशी प्रभावी तथा सस्ता होना चाहिये । इस समय खरपतवारनाशियों का प्रयोग सम्पूर्ण विश्व में सफलतापूर्वक किया जा रहा है ।


रसायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियन्त्रण के लाभ | merits of weed control by chemical Methods in hindi


खरपतवार नियन्त्रण हेतु रसायनों के प्रयोग से निम्न लाभ होते हैं -

  1. रसायनों द्वारा खरपतवार नियन्त्रण कम परिश्रम एवं कम समय में होता है ।
  2. थोड़े समय में कम श्रम के साथ अधिक क्षेत्रफल पर खरपतवारों का नियन्त्रण किया जा सकता है ।
  3. कुछ रसायन खरपतवारों द्वारा तेजी से ग्रहण कर अन्य भागों में पहुंच जाते हैं और वे पौधे के भूमिगत तथा भूमि से ऊपर सभी अंगों को समाप्त कर देते हैं ।
  4. खड़ी फसल के सभी खरपतवार एक खरपतवारनाशी के प्रति ग्राही होते हैं । खरपतवार फसलों की लाइनों के बीच में होने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
  5. रसायनों के प्रयोग से खरपतवारों के बीजों की सघनता भी रूक जाती है ।
  6. खरपतवारनाशियों के प्रयोग में आने वाला खर्च हाथ से निराई गुडाई करने पर आने वाले खर्च की अपेक्षा कम होता है ।
  7. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कृषक अधिक जल भराव के कारण निराई करने में असमर्थ रहते हैं । वहाँ पर रसायनिक विधि द्वारा खरपतवारों पर सरलता से नियन्त्रण सम्भव है ।
  8. कुछ खरपतवारों पर काँटे व बाल पाए जाते हैं, उन्हें अन्य विधियों की अपेक्षा रसायनिक विधि द्वारा नियन्त्रित किया जाता है ।
  9. बहुवर्षीय खरपतवारों को नियन्त्रित करने के लिये अन्य विधियों की तुलना में एक प्रभावशाली विधि है ।
  10. बंजर व बेकार पड़ी भूमियों में खरपतवारों के ऊपर अवरणात्मक (non - selective) रसायनों का छिड़काव कर इन्हें सरलतापूर्वक नष्ट किया जा सकता है ।


रसायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियन्त्रण से हानियाँ | demerits of weed control by chemical methods in hindi


खरपतवार नियन्त्रण हेतु रसायनों के प्रयोग से निम्न हानि होती हैं -

  1. कोई भी खरपतवारनाशी खरपतवारों की सभी जातियों को नष्ट नहीं करता है । खरपतवारनाशी के प्रयोग से केवल कुछ विशेष खरपतवारों पर नियन्त्रण किया जा सकता है ।
  2. खरपतवारनाशियों के सफल प्रयोग हेतु कीटनाशी, कवकनाशी और उर्वरकों की तरह ही रसायनों के प्रयोग के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है । अनुचित द अव्यवस्थित प्रयोग से लाभ की अपेक्षा हानि अधिक हो सकती है ।
  3. छिड़काव करने वाले उपकरण का मूल्य कृषक द्वारा प्रारम्भ में ही खर्च करने के कारण यह एक उत्साहित करने वाली स्थिति नहीं है । सहकारी स्तर पर समितियाँ बनाकर इस समस्या का निदान सम्भव है ।
  4. खरपतवारानाशियों के उचित प्रकार से प्रयोग के लिये एवं किसानों को सलाह के लिये प्रशिक्षित लोगों की कमी इस क्षेत्र की एक प्रमुख समस्या है । यह समस्या भी समय के साथ हल होती जा रही है ।


रासायनिक खरपतवार नियन्त्रण की सफलता एवं भविष्य | success and future of chemical weed control in hindi

कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये खरपतवारों का नियन्त्रण अत्यन्त आवश्यक है । खरपतवारों के नियन्त्रण में खरपतवारनाशी रसायनों की प्रमुख भूमिका है । इन रसायनों का प्रयोग खरपतवार नियन्त्रण की अन्य विधियों जैसे भौतिक, जैविक व सस्य वैज्ञानिक आदि की तुलना अत्यन्त प्रभावकारी सिद्ध हो चुका है ।

अतः कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु इन रसायनों की उपलब्धता बढ़ाने के लिये निरन्तर नए - नए रसायनों का विकास व व्यापारिक स्तर पर इनके निर्माण की आवश्यकता बढ़ी है । इस समय लगभग 400 से अधिक खरपतवारनाशी रसायन प्रयोग में लाए जा रहे है ।

इन रसायनों के निर्माण एवं विकास हेतु भारी मात्रा में प्रारम्भिक स्तर पर धन की आवश्यकता होती है जिसका अर्थ है खरपतवारों के नियन्त्रण एवं उन्मूलन पर खर्च । परन्तु रसायनों के प्रयोग से यह सिद्ध हो चुका है कि भौतिक नियन्त्रण की तुलना में यह एक सस्ती एवं प्रभावकारी विधि है । इनके प्रयोग से कृषि उत्पादन बढ़ता है तथा खरपतवार नियन्त्रण पर होने वाले खर्च में कमी आती है ।

खरपतवारनाशियों के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के कारण इनके प्रयोग की प्रबल सम्भावनाएं हैं । खरपतवारनाशियों के अवशोषण, परिवहन, क्रियाविधि, रसायनिक उपचार तथा खरपतवारों को आकारिकी व बाह्य संरचना पर रसायनों के प्रभाव का विस्तृत अध्ययन एवं शोध कार्य प्रगति पर है ।

इस शोध कार्य में जैव रसायन, भू रसायन, सूक्ष्म जीव विज्ञान, पादप कार्यिकी और सस्य विज्ञान आदि विभागों के वैज्ञानिक कार्यरत हैं । यह एक सर्वविदित तथ्य है कि खरपतवारनाशियों के निरन्तर बढ़ते हुए प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषण को भारी खतरा उत्पन्न हो गया है, परन्तु आज भी यह खतरा इनसे लाभ की तुलना में नगण्य है तथा इसे कम करने के प्रयास भी निरन्तर जारी है ।


4. जैविक विधियाँ ( Biological Methods ) -

जैविक विधियों द्वारा खरपतवार नियन्त्रण का कार्य वर्तमान समय में बढ़ते हुये पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य के लिये खरपतवारनाशियों से बढ़ते प्रदूषण को रोकने हेतु उपयुक्त माना गया है ।

इस विधि में कीटों, मछलियों, घोंघो, धुन्न फफूंद व प्रतिस्पर्धात्मक पौधों का प्रयोग खरपतवार नियन्त्रण में किया जाता है । कीटों एवं पादप रोगों द्वारा जैविक विधि से खरपतवार नियन्त्रण एक प्राचीन एवं प्रभावकारी विधि है ।

जैविक नियन्त्रण विकास की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है । अन्य विधियों के असफल रहने पर जैविक विधियों का प्रयोग सफल पाया गया है । खरपतवारों पर जैविक नियन्त्रण खरपतवारों के प्राकृतिक शत्रुओं द्वारा किया जाता है ।

इन प्राकृतिक शत्रुओं में कीट, रोगों के जीवाणु, जानवर व विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ सम्मिलित है । खरपतवारों के जैविक नियन्त्रण में विभिन्न प्रकार के जैविक साधनों की सक्रिय भूमिका रहती है ।


खरपतवार नियन्त्रण की जैविक विधि | biological method of weed control in hindi

वर्तमान समय में बढ़ते हुए पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य के लिये व खरपतवारनाशियों द्वारा बढ़ते प्रदूषण की चिन्ता के कारण जैविक विधि से खरपतवारों के नियन्त्रण पर शोध कार्य बढ़ रहा है ।

कीटों एवं पादप रोगों द्वारा जैविक विधि से खरपतवार नियन्त्रण एक प्राचीन एवं प्रभावकारी विधि है । जैविक नियन्त्रण विकास की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है । अन्य विधियों के असफल रहने पर जैविक विधियों का प्रयोग सफल पाया गया ।

खरपतवारों पर जैविक नियन्त्रण खरपतवारों के प्राकृतिक शत्रुओं द्वारा किया जाता है । इन प्राकृतिक शत्रुओं में कीट, रोगों के जीवाणु, जानवर व विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ सम्मिलित हैं । खरपतवारों के जैविक नियन्त्रण में विभिन्न प्रकार के जैविक साधनों की सक्रिय भूमिका रहती है ।


जैविक साधनों के प्रकार ( Types of Bio agents ) -

ऐसे जीव या कीट जो खरपतवार नियन्त्रण हेतु प्रयोग में लाए जाते है जैविक साधन (bio-agents) कहलाते हैं ।

इनमें कीट, मछलियाँ, घोंघे, धुन, फफूदँ तथा प्रतिस्पर्धात्मक पौधे सम्मिलित होते हैं । अन्य जीवों की में कीटों का प्रयोग जैविक विधि से खरपतवार नियन्त्रण हेतु अधिक प्रचलन में है इन कीटों में लेपिडोप्टेरा, हेमीप्टेरा कोलियोप्टेराडिप्टेरा आदि हैं । मछलियों में कार्प मछली प्रमुख है ।

इनके अतिरिक्त घोंघे, धुन, फफूदँ व प्रतिस्पर्धात्मक पौधे भी खरपतवारों को नियन्त्रित करने में सहायक होते हैं । जैविक साधनों का प्रयोग करते समय बहुत सी सावधानियाँ रखना आवश्यक है । किसी भी जीवाणु या कीट का चुनाव करने से पूर्व उनके जीवन चक्र आर्थिक प्रभाव तथा पौधों के साथ सम्बन्ध आदि का सम्पूर्ण ज्ञात होना अनिवार्य है । उस जीवाणु की जलवायु मौसम व भूमि की प्रतिकूल परिस्थितियों में अनुकूलन क्षमता होनी चाहिये ।

ऐसे कीट का चुनाव करना चाहिये जिसका शत्रु कीट उस स्थान पर न पाया जाता हो अन्यथा शत्रु कीट द्वारा चुनाव किये गये कीटों को खा लिये जाने का भय रहता है ।


जैविक विधि से खरपतवार नियन्त्रण अन्य विधियों की तुलना में किस प्रकार प्रभावकारी है? 

जैविक विधियों द्वारा खरपतवार नियन्त्रण में प्रारम्भिक खर्च अधिक प्रतीत होता है, परन्तु सत्यता यह है कि एक नए खरपतवारनाशी की खोज के लिये होने वाले खर्च की तुलना में यह नगण्य है । अकृषिकृत क्षेत्रों में जैविक विधि से खरपतवारों पर नियन्त्रण करना एक उत्तम विकल्प है । एक पौधा किसी एक क्षेत्र में हानिकारक खरपतवार हो सकता है, परन्तु आस - पास के अन्य क्षेत्रों में यह पौधा पशुओं के चारे, भूमि संरक्षण या सीमा निर्धारण आदि के कारण उपयोगी होते हुए अपनी पहचान बना सकता है ।

उदाहरण - कुछ क्षेत्रों में नागफनी एक हानिकारक खरपतवार है और इसका नियन्त्रण कैक्टोब्लास्टिस कैक्टोरम कीट द्वारा आसानी से सम्भव है लेकिन कुछ क्षेत्रों में नागफनी की चारे के पौधे के रूप या खेत की सीमा निर्धारण के रूप में उपयोगिता है । नागफनी खरपतवार की इस उपयोगिता के कारण उस क्षेत्र के लोग कीट द्वारा इसके नियन्त्रण को उचित नहीं मानते ।

भौतिकरासायनिक विधियाँ किसी खरपतवार को नियन्त्रित करने में दिये गये क्षेत्र की एक निश्चित सीमा तक कार्य करती हैं जबकि कीट व अन्य जैविक साधन प्रयोग किये गए क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों में जाकर मुख्य फसल के पौधों का नुकसान पहुंचाते हैं ।

उपरोक्त विधियों की सीमाओं में प्रौद्योगिकी सुधार एवं विकास और सापेक्ष खर्च की तुलना में लाभकारी मूल्य को देखते हुए जैविक नियन्त्रण को विकसित होने और समन्वित जैव नियन्त्रण (integrated Bio control) के साथ - साथ खरपतवारनाशियों के प्रयोग की प्रयोग की निश्चित सीमाओं के कारण जैविक विधि द्वारा खरपतवार नियन्त्रण की नई सम्भावनाएँ विकसित हुई हैं ।


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खरपतवारनाशियों की भूमि में प्रयोग की विभिन्न विधियों | application of herbicides in soil  in hindi

भूमि की सतह पर खरपतवारनाशियों का प्रयोग करते समय उनका समान वितरण होना चाहिये । खरपतवारनाशियों के समान वितरण को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं जैसे भूमि की धरातल व भूमि को ऊँचा नीचा होना आदि । एक ढेलेयुक्त भूमि की सतह पर खरपतवारनाशियों का वितरण असमान हो सकता है ।


भूमि की सतह पर खरपतवारनाशियों के प्रयोग की निम्न विधियाँ अपनाई जाती है -

  • भूमि सतह पर प्रयोग ( Surface application ) - भूमि की सतह पर हैरो, कल्टीवेटर या अन्य समान यन्त्रों की सभी दिशाओं में खरपतवारनाशियों को छिड़ककर सरलतापूर्वक मिट्टी में मिलाया जा सकता है । भूमि में रसायन को मिलाने में विभिन्न विधियों को अपनाने से भूमि की गहराई में उनका वितरण भी असमान होता है । प्रत्येक यन्त्र के कार्य करने की गहराई तक इनका वितरण नहीं हो पाता, जिसके फलस्वरूप कभी - कभी एक स्थान पर खरपतवारनाशी की उचित मात्रा का प्रयोग होता है जबकि दूसरे स्थान पर कम या अधिक हो जाता है । खरपतवारनाशियों को भूमि में विभिन्न यन्त्रों की सहायता से 5 सेमी. गहराई तक मिलाया जाता है । उदाहरण - 2, 4 -D सीमाजीन व बेसालीन आदि ।
  • अधोभूमि सतह पर प्रयोग ( Sub surface application ) – इस विधि में एक विशेष बौछार करने वाले उपकरण द्वारा भूमि की ऊपरी सतह के नीचे लगभग 5-10 सेमी की गहराई पर खरपतवारनाशी को बौछार के रूप में प्रयोग में लाया जाता है । खरपतवारनाशी जड़ों द्वारा खरपतवारों में पहुँचकर उसकी कोशिकाओं उत्तकों व विभिन्न अंगों को नष्ट कर देता है । उदाहरण - हिरनखुरी व मौथा खरपतवारों को इस विधि द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ।
  • पट्टियों में प्रयोग ( Band application ) - यह विधि पट्टियों में बोई जाने वाली फसलों के लिये उपयुक्त मानी गई है । पट्टियों में प्रयोग की विधि फसल की पंक्तियों के साथ प्रयोग होने के कारण प्रयोग क्षेत्रफल को कम कर देती है । यह एक सस्ती विधि हैं ।
  • मृदा धूमकों का प्रयोग ( Application of siol fumigants ) - किसी खेत में बहुवर्षीय खरपतवारों को समाप्त करने के लिये यह एक स्थाई विधि है । इस विधि में रसायन को पिचकारी की सहायता से मिट्टी के नीचे गैस के रूप में छोड़ा जाता है । यह गैस मिट्टी में उपस्थित खरपतवारों कीड़ो, नीमाटोड्स बैकटीरिया तथा अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं को समाप्त कर देता है और मृदा निर्जीमीकारक की तरह कार्य करता है । उदाहरण - क्लोरोपिकरीन व मिथाइल ब्रोमाइड आदि ।


सतही तथा अधोसतही प्रयोग खरपतवारनाशी में अन्तर -


सतही खरपतवारनाशी | surface herbicide in hindi

  • ये खरपतवारनाशी भूमि की सतह के ऊपर प्रयोग किये जाते हैं ।
  • इनका प्रयोग भूमि की ऊपरी 3-4 सेमी० की सतह तक किया जाता है ।
  • ये मौसमी अथवा एकवर्षीय खरपतवारों के लिये उपयुक्त माने गये हैं ।
  • इनका प्रयोग सभी फसल युक्त खेतों में किया जाता है ।
  • ये वाष्पशील (volatile) नहीं होते ।
  • इनके प्रयोग हेतु किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती ।
  • उनके उदाहरण यूरिया, triazine anilide व EPTC आदि हैं ।


अधोसतही खरपतवारनाशी | sub - surface herbicide in hindi

  • ये खरपतवारनाशी भूमि के अन्दर प्रयोग किये जाते हैं ।
  • इनका प्रयोग 7-10 सेमी० की गहराई तक किया जाता है । 
  • ये बहुवर्षीय खरपतवारों के नियन्त्रण में प्रभावकारी है ।
  • इनका प्रयोग बगीचों या चौड़ी पंक्तियों आदि में किया जाता है ।
  • ये प्राय: वाष्पशील (volatile) होते हैं, अतः इन्हें fumigants कहते है ।
  • इनके प्रयोग हेतु विशेष उपकरण की आवश्यकता पड़ती है । वाली फसलों जैसे चुकन्दर व तम्बाकू आदि ।
  • इनके उदाहरण कार्बामेट, नाइट्रालीन, साकोलेट व व्यूटोइलेट आदि हैं ।

5. अन्य विधियाँ ( Other methods ) -

खरपतवारों पर कुछ अन्य विधियों द्वारा भी नियन्त्रण संभव है ।

ये विधियाँ निम्नलिखित हैं -

  • ट्रंक इन्जेक्शन ( Trunk Injection )
  • जार विधि ( Jar Method )
  • सिंचाई की नालियों में रासायनिक उपचार ( Chemical Treatment in irrigation channels )