खेती (Kheti) - खेती किसे कहते हैं खेती कितने प्रकार की होती हैं

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खेती (Kheti) - खेती किसे कहते हैं खेती कितने प्रकार की होती हैं


भारत में सर्वाधिक प्राचीन व्यवसायों में से खेती (kheti) एक मुख्य व्यवसाय है । भारत में युगों - युगों से खेती-बाड़ी करते हुए मानव ने खेती के कई प्रकारों (kheti ke parkar) को विकसित किया है ।

परिस्थिति, आवश्यकता एवं मांग के अनुसार के किसी एक प्रकार का चयन करने से लिए तथा खेती (kheti) किसान को समग्र रूप में समझने के लिए खेती के सभी प्रकारों को भली - भाँति जान लेना साधारण किसान से लेकर आधुनिक कृषि वैज्ञानिक तक सभी को जान लेना अत्यन्त आवश्यक एवं लाभप्रद है ।

खेती किसे कहते है? | kheti kaise kahate hain?

साधारण रूप से खेती किसे कहते हैं यह एक प्रक्षेत्र विशेष पर कृषि व्यवसायों से धर्नाजन अनुपात तथा उत्पादन विधियों से है ।

अर्थात् जब किसी एक क्षेत्र में स्थित जब कई फार्मस के आकार, वस्तुओं के उत्पादन और उत्पादन में अपनायी जाने वाली विधियों में प्रायः समानता होती है तो उसे खेती (kheti) कहा जाता है ।

खेती की परिभाषा | Kheti ki paribhasha 

खेती की परिभाषा - "एक समूह में उत्पादित फसलों और पशुओं के उत्पादन की किस्म और अनुपात में तथा उत्पादन करने में अपनायी जाने वाली विधियों और रीतियों में पूर्णरूप से समान हों तो वह समुह खेती (Kheti) कहलाता है ।"

सरल शब्दों में खेती की परिभाषा निम्न प्रकार से भी दी जा सकती हैं "भूमि पर को जाने वाली समस्त कृषि क्रियाएं एवं पशुपालन करना ही खेती कहलाता है ।"

खेती कितने प्रकार की होती है? | kheti ke prakar 

खेती (kheti) वह एक निश्चित प्रक्षेत्र जिसमें सभी कृषि क्रियाएं की जा सके और साथ ही पशुपालन करके दोहरा लाभ उठाया जा सके ।

खेती पांच प्रकार की होती है -

  • विशिष्ट खेती ( Specialized Farming )
  • मिश्रित खेती  ( Mixed Farming )
  • शुष्क खेती ( Diversified Farming )
  • बहु प्रकारीय खेती ( Dry Farming )
  • रैंचिंग खेती ( Ranching Farming )


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खेती के प्रकार - अर्थ एवं परिभाषा 

जब खेती का वर्गीकरण भूमि के उपयोग, फार्म के आकार, मशीनों एवं यन्त्रों के प्रयोग, पशुपालन एवं फसलों के उत्पादन आदि के आधार पर किया जाता है तब उसे खेती के प्रकार (kheti ke prakar) कहते है । जैसे - विशिष्ट खेती, मिश्रित खेती, यांत्रिक खेती, शुष्क खेती आदि ।

खेती के प्रकार का अर्थ - 

"किसी एक क्षेत्र में जब कई प्रक्षेत्र प्रायः आकार, वस्तु उत्पादन और अपनाई जाने वाली विधियों की दृष्टि से समान होते है तो उन्हें खेती के प्रकार (kheti ke prakar) कहते है ।"

खेती के प्रकार की परिभाषा -

जाॅन्सन के अनुसार - "जब किसी वर्ग  के अन्दर कई प्रक्षेत्र एक किस्म के हों तथा उन पर उत्पन्न होने वाली फसलें एवं पशुओं की मात्रा और उत्पादन विधि तथा क्रियाओं में समानता हो उसे खेती के प्रकार कहते है ।"

रोस के अनुसार - "किसी एक क्षेत्र में जब कई प्रक्षेत्र सामान्यतया आकार वस्त - उत्पादन और अपनाई जाने वाली विधियों की दृष्टि से समान होते है तो उन्हें खेती के प्रकार कहते है ।"

भारतीय कृषि की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर खेती के प्रकार की एक उपयुक्त परिभाषा नीचे दी गई है -

खेती के प्रकार की परिभाषा - "भूमि के उपयोग, फसलों एवं पशुधन के उत्पादन का आकार और कृषि क्रियाओं के अपनाने के आधार पर लिया जाता है ।"

पारिभाषिक रूप से खेती के प्रकार से तात्पर्य प्रक्षेत्र विशेष पर कृषि व्यवसायों से धर्नाजन अनुपात तथा उत्पादन विधियों से है । 

खेती के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए?

भोजन एवं अन्य शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य ने कृषि का विकास किया तथा कालान्तर में इसके अनेक स्वरूपों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें सामान्य रूप से खेती के प्रकार कहा जाता है ।

खेती के प्रकार खेती को सुनिश्चित करने की कार्य पद्धति है जिसके द्वारा क्षेत्र विशेष की पहचान कर परिसीमन किया जा सकता है । कृषि प्रकार के निर्धारण में भौतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक आदि कारकों से होता है ।

इन कारकों के विचरकों में जलवायु, उच्चावच, भूमि की उत्पादकता, भूमि सक्षमता, कृषि में मानव श्रम, कृषि में पशुशक्ति, कृषि हेतु मशीनीकरण, उर्वरक, सिंचाई, शस्य प्रतिरूप, वाणिज्यीकरण की मात्रा आदि को सम्मिलित करते हैं । इन्हीं विचरकों के प्रभेद से कृषि - प्रकार में भिन्नता पायी जाती है ।

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खेती के प्रकारों का वर्गीकरण | classification of farming types in hindi

फसल व पशुधन उत्पादन आकार एवं कृषि क्रियाओं एवं रीतियों में समरूप प्रक्षेत्रों को कृषि (agriculture in hindi) का एक प्रकार कहा जाता हैं ।

खेती के तरीके को कृषि योग्य भूमि में आपूर्ति, शस्य आदि कारकों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है ।

खेती के प्रकारों का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया गया है -

  • कृषि योग्य भूमि की आपूर्ति के आधार पर वर्गीकरण
  • विस्तृत खेती तथा गहन खेती की मात्रा के आधार पर‌ वर्गीकरण
  • शस्य गहनता के आधार पर वर्गीकरण
  • वाणिज्यीकरण के आधार पर वर्गीकरण
  • मिश्रित खेती के आधार पर वर्गीकरण


1. कृषि योग्य भूमि की आपूर्ति के आधार पर वर्गीकरण

  • गहन खेती ( Intensive Farming )
  • विस्तृत खेती ( Extensive Farming )


  • गहन खेती ( Intensive Farming ) - गहन कृषि का प्रचलन न भागों में पाया जाता है जहाँ कृषि योग्य भूमि का विस्तार कम है एवं जनसंख्या का घनत्व अधिक में भूमि पर जनसंख्या का भार अधिक होने के कारण प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भf बहुत कम पाई जाती है । गहन खेती (intensive farming in hindi) वाले प्रदेशों में गहरी जुताई, उर्वरकों की अधिक आप भरपूर सिंचाई के साधन, पूँजी, श्रम और वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से वर्ष में एक से अधिक फसले उत्पन्न की जाती हैं और प्रति हेक्टेयर अधिकाधिक उत्पादन लेने के प्रयत्न किये जाते हैं । अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए उत्तम बीज, शस्यावर्तन, कीट संरक्षण आदि की व्यवस्था की जाती हैं । इन क्षेत्रों में खेत छोटे - छोटे होते हैं तथा खाद्य फसलों के उत्पादन पर बल दिया जाता है, ताकि अधिक से अधिक जनसंख्या का भरण - पोषण हो सके । विश्व में ऐसे क्षेत्रों में उत्तरी - पश्चिमी यूरोप, दक्षिणी - पूर्वी एशिया - चीन, भारत, जापान, कोरिया, इण्डोचीन, सुमात्रा तथा जावा के कुछ भाग इस प्रदेश में सम्मिलित हैं । इन भागों में जनसंख्या का घनत्व कृषि - भूमि पर संसार के अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक मिलता है । गहन खेती वाले ये प्रदेश बहुत प्राचीन काल से आबाद हैं और किसानों ने शताब्दियों के । प्रयोगों से इस गहन कृषि - पद्धति तथा भूमि उपयोग प्रतिरूप का विकास किया है । ये क्षेत्र नदी - घाटियों और अत्यधिक सघन जनसंख्या वाले केन्द्र हैं । अधिक जनसंख्या के कारण सस्त श्रमिकों की बहुतायत होती है । अतः कृषकों ने गहन कृषि (intensive farming in hindi) को अपनाया है । इस प्रकार का कृषि में चावल मुख्य फसल है जो वर्ष में दो या तीन बार तक कुछ क्षेत्रों में उत्पन्न या तीन बार तक कुछ क्षेत्रों में उत्पन्न किया जाता हैं ।
  • विस्तृत खेती ( Extensive Farming ) - इस प्रकार का भागों में है जहाँ भूमि की आपूर्ति पर्याप्त है तथा जनसंख्या का घनत्व अपक्षाकृत है । इन क्षेत्रों में कृषकों का मूल उद्देश्य होता है, बड़े - बड़े फार्मों से आ करना । इन विस्तृत खेती प्रदेशों में फसलों का उत्पादन व्यापार की दृष्टि से फसलों का विशिष्टीकरण होता है । जहाँ विस्तृत खेती प्रदेश में एक फसल को प्र० वहीं गहन कृषि में वर्ष में दो या तीन फसले जीवन निर्वाहन हेतु उत्पन्न कमी मशीनों से पूरी की जाती है । विस्तृत खेती में अधिक पूंजी का निवेश होता है । (स्टेपीज), संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी तथा मध्य क्षेत्र, कनाडा के प्रेयर डाउन्स तथा अर्जेन्टाइना के पंपास में इस प्रकार की विस्तृत कृषि का प्रचलन फसल है, जो शीतकाल एवं बसन्त काल में बोया जाता है । अतः विस्तृत खेती (extensive farming in hindi) भिन्न प्रकार की है । इस प्रकार की कृषि का प्रचलन उन नसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत बहुत ही कम आता है, बड़े - बड़े फार्मों से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त व्यापार की दृष्टि से करते हैं । फर्मो पर विशेष में एक फसल को प्रधानता होती हैं, विहिन हेतु उत्पन्न की जाती है । श्रम की का निवेश होता है । रूस के भीतरी भाग ध्य क्षेत्र, कनाडा के प्रेयरी, आस्ट्रेलिया के विस्तृत कृषि का प्रचलन हैं गेहूँ मुख्य है ।

2. विस्तृत खेती तथा गहन खेती से की मात्रा के आधार पर वर्गीकरण

  • आर्द्र कृषि ( Humidity Farming )
  • सिंचित कृषि ( Irrigated Farming )
  • शुष्क खेती ( Dry Farming )


  • आर्द्र कृषि ( Humidity Farming ) - क्षेत्र वे हैं जहां 200 से०मी० अथवा के वर्षा होती है । इन क्षेत्रों में पौधों में नमी की आपूर्ति वर्षा से ही हो जाती है । धान इस प्रकार के कृषि की प्रमुख फसल है । इस पद्धति में अनेक महीनों तक खेतों में पानी भरा रहता है । कि आई क्षेत्रों में धान की तीन तीन फसले (अमन, आस और बोरो ) प्राप्त की जाती हैं । पूर्वी भारत, बंगलादेश एवं श्रीलंका में खेती का यह प्रकार देखा जा सकता है ।
  • सिंचित कृषि ( Irrigated Farming ) - का प्रचलन उन भागो में होता है जहाँ सीमित एवं अनिश्चित वर्षा होती हैं किन्तु सिंचाई के साधन, जैसे - ननकूप, नहरें इत्यादि मौजूद हैं । उत्तरी भारत का मानसूनी क्षेत्र एवं अफ्रीका के उपोषण प्रदेश में यह कृषि - प्रकार प्रचलित हैं । भारत के अतिरिक्त चीन, अमेरिका, मिस्र, टर्की, रूस आदि देशों में सिंचित कृषि का प्रचलन अधिक रहा हैं ।
  • शुष्क खेती ( Dry Farming ) - की प्राचीन पद्धति है । इसका अभिप्राय उन कृषि क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि से है जहाँ वर्षा की मात्रा 50 से०मी० से कम है तथा सिंचाई के साधनों का भी अभाव है । जेटजोल (jatzod, 1979) के मतानुसार इस प्रकार की कृषि जल सान्द्रण संस्कृति जल संचय संस्कृति (water concentrating culture) पर आधारित होती है । व्यावहारिक रूप से कृषि के इस प्रकार के अंतर्गत वर्षा जल को खेतों एवं समीपवर्ती स्थानों में एकत्रित करके प्रयुक्त किया जाता है तथा साथ ही नमी संरक्षण की तकनीकों का भी अत्यधिक प्रयोग किया जाता है । भारत में राजस्थान, गुजरात आदि में इस प्रकार की कृषि का प्रचलन है । इस्राइल ने इस प्रकार की कृषि की अनेक उन्नत तकनीकों का विकास किया है, जिसमें बूंद - बूंद सिंचाई, मटका सिंचाई आदि प्रमुख हैं । भारत में ज्वार, बाजर, जौ, चना, सरसों शुष्क खेती (dry farming in hindi) क्षेत्र की प्रमुख फसलें हैं ।


3. शस्य गहनता के आधार पर वर्गीकरण

शस्य गहनता के आधार पर खेती को निम्न तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है -

  • एक फसली खेती ( Mono Cropping )
  • द्वि फसल खेती ( Double Cropping )
  • बहु फसली खेती ( Multiple Cropping )


  • एक फसली खेती ( Mono Cropping ) - कृषि के इस प्रकार के अंतर्गत वर्ष में एक ही फसल का उत्पादन प्राप्त किया जाता है । विशेष रूप से यह कृषि बड़े बागानों में प्रचलित हैं । जैसे – मलाया एवं हिन्देशिया में रबर के बागान, ब्राजील में कहवा, क्यूबा में गन्ना तथा भारत के असम एवं दार्जीलिंग में चाय के बागानों की खेती ।
  • द्वि फसल खेती ( Double Cropping ) - के इस प्रकार के अंतर्गत वर्ष में दो भिन्न - भिन्न फसलें प्राप्त की जाती हैं । सामान्यतः अत्यधिक सघन आबादी क्षेत्रों में जहाँ भौगोलिक दशाएँ उपयक्त हैं, वहाँ इस प्रकार की कृषि की जाती है । भारत एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में नदियों द्वारा निर्मित मैदानों जैसे - गंगा यमुना के दोआब में शीत एवं ग्रीष्मकालीन (रबी व खरीफ) फसलें इसी प्रकार की द्वि फसली कृषि है ।
  • बहु फसली खेती ( Multiple Cropping ) - बहु फसली कृषि से अभिप्राय किसी भू - भाग औधक फसलें प्राप्त करने से हैं । इसकी संभावना वहाँ होती है जहां की दशायें त्रि के लिए अत्यधिक अनकल होती हैं । यह कृषि का अत्यधिक उन्नत एवं गहन प्रकार महारत क्रान्ति से बाद इस प्रकार की कृषि का प्रचलन हुआ है । भारत के अतिरिक्त चीन एवं अमेरिका के अनेक उन्नत कृषि क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि प्रचलित इसे प्रवासी कृषि (migratory farming in hindi) भी कहा जाता है । जैसे - भारत में झूम खेती या में लंदांग, फिलीपोन्स में कैनजीन, अमेरिका एवं रोडेशिया (अफ्रीका) में मिल्या जाता है । इस प्रकार की कृषि में वनों को कछ वर्ष खेती करने के पश्चात् उस क्षेत्र किये जाते है । 


4. वाणिज्यीकरण के आधार पर वर्गीकरण

  • आदिम खेती (  Primitive Farming )
  • व्यावसायिक खेती ( Commercial Tarining Farming )
  • रोपण खेेती ( Plantation Farming  )


  • आदिम खेती ( Primitive Farming ) - इसे प्रवासी का (cultivation), स्थानान्तरणशील खेती (shifting farming in hindi) देशों में भी इसे भिन्न - भिन्न नामों से जाना जाता है । जैसे - भारत (cultivation), मलाया एवं हिन्देशिया में लंदांग (land, caingin), श्रीलंका में चेना (chena), अमेरिका एवं रोडे (milpa) एवं सुडान में गासू (nagasu) कहा जाता है । इस प्रकार का जलाकर उसकी राख से खेत तैयार किया जाता है तथा कुछ वर्ष खेती को परतो छोड़ कर दूसरे क्षेत्रों में खेत तैयार किये जाते हैं । यद्यपि पर्यावरणीय इस प्रकार की कृषि का प्रचलन तेजी से कम होता जा रहा है किन्तु अभी भागों में इस प्रकार की खेती (kheti) को देखा जा सकता है । विशेष रूप से 5० से 10 दक्षिणी अमेरिका के अमेजन बेसिन, अफ्रीका के कांगों बेसिन, दक्षिण - पूर्वी राशि द्वीप समूह के विषम उच्च भू - भागों में इसका प्रचलन बना हुआ है ।
  • व्यावसायिक खेती ( Commercial Tarining Farming ) - यह कृषि का आधुनिक प्रकार है । औधोगीकीकरण, यातायात के साधनों का विकास एवं वैज्ञानिक तकनीकी ज्ञान वद्धि के साथ इस कृषि का विकास हुआ है । इसके अंतर्गत फसल का उत्पादन उपभोग के स्थान पर बेचने के लिए किया जाता है, इसलिए सामान्यतः नगदी फसलों की खेती की जाती है । यह विस्तृत, गहन एवं मिश्रित सभी प्रकार की खेती का मिला - जुल रूप है । इसमें मानवीय श्रम के स्थान पर ट्रेक्टर, हरवेस्टर, बथ्रेसर आदि शक्ति चलित कृषि मशीनों का अत्यधिक प्रयोग किया जाता है । विश्व में इस प्रकार की कृषि मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्द्ध में महाद्वीपों के आन्तरिक भागों एवं दक्षिणी गोलार्द्ध के तटीय भागों में प्रचलित है ।
  • रोपण खेेती ( Plantation Farming ) - यह भी खेती का एक आधुनिक प्रकार है । इसका प्रारम्भ दक्षिणी गोलार्द्ध के उष्ण एवं उपोषण प्रदेशों में हुआ तथा दक्षिणी - पूर्वी एशिया क्षत्र इसमें अग्रणीय है । साथ ही मध्य और दक्षिणी अमेरिका तथा पूर्वी एवं पश्चिम जान में भी इसका विस्तार देखा जा सकता है । रोपण खेती की प्रमुख विशेषताएं है - बड़े पैमान फसल की प्रधानता, विशिष्ट कृषि पद्धति (रोपण) का प्रयोग आदि । इससे कहवा, नारियल, गन्ना, केला, मसाले, कोको, रबर आदि का उत्पादन किया । 


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5. मिश्रित खेती के आधार पर वर्गीकरण

मिश्रित खेती (mixed farming in hindi) का वह प्रकार है जिसके अंतर्गत कृषि के अन्य जैसे — बागवानी, पशुपालन, कृषि वानिकी आदि को भी सम्मिलित किया जाता है ।

मिश्रित खेती को निम्नलखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है -

  • उद्यान विज्ञान ( Horticulture )
  • पशुपालन ( Animal Husbandry )
  • कृषि वानिकी ( Agro Forestry )


( i ) उद्यान विज्ञान एवं उसकी शाखाएं 

उद्यान विज्ञान (horticulture in hindi) अंतर्गत खाद्यान्न फसल को भी सम्मिलित किया जाता है ।

  • सब्ज़ियों की खेती ( Olericulture ) 
  • पुष्पों की खेती ( Floriculture ) 
  • फलो की खेती ( Gardening )
  • औषधयों की खेती ( lehiculture )

उद्यान विज्ञान की निम्न तीन प्रमुख तथा खाद्यान्न फसलों के साथ ही बागवानी है -

  • शाक - भाजी की खेती खेती ( Fruits Iture )
  • फलो की से चरागाह कृषि ( Pastoral Farming )


( ii ) पशुपालन एवं उसकी शाखाएं

इसे चरागाह कृषि कहा जाता है । पशुपालन के अंतर्गत अनेक प्रकार के पालत एवं लाभदायक पशु अतर्गत कृषि के अन्य सहायक प्रकारों म्मलित किया जाता है । एवं लाभदायक पशुओं का पालन (animal husbandry in hindi) करते हुए कृषि की जाती है ।

पशुपालन की प्रमुख शाखाएं -

  • गाय - भैंस पालन ( Catle Farming )
  • भेड़ - बकरी पालन ( Sheep - Goat Farming )
  • सुअर पालन ( Pig Farming )
  • मुर्गी / बत्तख / तीतर पालन ( Poultry Farming )
  • मधुमक्खी पालन ( Apiculture / Bee Farming )
  • रेशम कीट पालन ( Sericulture )
  • मत्स्य पालन ( Pisiculture ) 


( iii) कृषि वानिकी ( Agro Forestry )

खेती के साथ वन्य वृक्षों को उगाना ही कृषि वानिकी कहलाता है ।

कृषि वानिकी की परिभाषा (defination of agroforestry in hindi) - “कृषि वानिकी वह सिद्धान्त तथा व्यवहार है जिसके द्वारा वनों की देखभाल की जाती है तथा वन से प्राप्त होने वाली वस्तुओं का उपयोग किया जाता है ।"


( iv ) सामाजिक वानिकी  ( Social Forestry )

कृषि वानिकी कृषकों का अकेले अथवा भागीदार में अपने संसाधनों के सम्बन्ध में, अपनी भूमि पर वन लगाने या प्रबन्धन करने की दिशा में किया गया संकल्प है ।

उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है, कि परिस्थिति, मांग, तकनीक, जलवायु आदि के आधार पर कृषि (kheti) के अनेक प्रकार प्रचलित हैं ।

सामाजिक वानिकी की परिभाषा ( socialforestry in hindi) - "समाज के द्वारा समाज के लिए समाज की ही भूमि पर समाज के जीवन - स्तर को सुधारने के सामाजिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर किए जाने वाले वृक्षारोपण को सामाजिक वानिकी कहते है ।"

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खेती के प्रकार को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक क्या है?

वर्तमान मनुष्य के पूर्वज 'आदि मानव' का विकास लगभग 250 हजार वर्ष पूर्व होने की परिकल्पना की गई है तथा वर्तमान मनुष्य का प्रादुर्भाव लगभग 35 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीका में हुआ माना गया है ।

अपने सहचर जीवों की अपेक्षा मानव की प्रमुख विशेषता मस्तिष्क का विकास एवं समस्या समाधान के लिए मस्तिष्क का प्रयोग करना है । इसी के बलबूते अपने उद्भव काल से ही मनुष्य निरन्तर विकासमान रहा है ।

खेती के प्रकार (kheti ke prkar) को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक -

  • प्राकृतिक कारक ( Natural Factors )
  • सामाजिक कारक ( Social Factors )
  • आर्थिक कारक ( Economic Factors )


1. प्राकृतिक कारक ( Natural Factors ) -  

प्राकृतिक कारक उद्यमों के उत्पादन की सम्भावना को व्यक्त करते है और इन्हीं कारकों के कारण ही कोई फसल - विशेष किसी एक क्षेत्र में दूसरे क्षेत्र की अपेक्षा अधिक उत्पादन एवं लाभ देती है । फलस्वरूप दो विभिन्न क्षेत्रों में खेती के प्रकार में भिन्नता पाई जाती है । 

प्राकृतिक कारकों के अन्तर्गत निम्नांकित कारक महत्वपूर्ण है -

  • भूमि ( Land )
  • भूमि का धरातल ( Surface of Land )
  • जलवायु ( Climate )


  • भूमि ( Land ) - विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए अलग - अलग प्रकार की मृदायें उपयुक्त होती हैं जैसे आलू तथा मूंगफली के लिए बलुई या बलुई दोमट, गेहूँ के लिए दोमट, कपास के लिए काली मृदा उपयुक्त मानी जाती है । मृदा के प्रकार के आधार पर ही उनमें अलग - अलग गुण जैसे मृदा की बनावट, पानी सोखने की शक्ति, जीवांश की मात्रा, अम्लीयता, क्षारीयता आदि पाये जाते हैं । अत: विभिन्न क्षेत्रों में मृदा के प्रकार की भिन्नता के आधार पर खेती के प्रकार भी अलग - अलग पाये जाते हैं ।
  • भूमि का धरातल ( Surface of Land ) - भूमि का धरातल अर्थात् समतल या ढालदार , भूमि की ऊचाई जैसे ऊँची भूमि, नीची भूमि आदि विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने को काफी प्रभावित करती है ।
  • जलवायु ( Climate ) - जलवायु में वर्षा, तापमान, आर्द्रता, सूखा, पाला, आँधी, ओले आदि सम्मिलित होते है, जो खेती के प्रकार को काफी प्रभावित करते हैं । विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु का भिन्नता के कारण अलग - अलग फसलें उगाई जाती है, जैसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में धान, गन्ना, जूट आदि तथा सूखे क्षेत्रों में ज्वार, बाजरा, मक्का आदि फसलें अधिक पैदावार देती है ।


2. सामाजिक कारक ( Social Factors ) -

सामाजिक कारक कषक की मानसिक स्थिति को प्रभावित करते हैं । समाज में व्याप्त रीति - रिवाज, परम्परायें, रूढ़िवादिता आदि कषकों पर सामाजिक प्रतिबन्धों के द्वारा नये - नये उद्यमों के चयन में बाधा डालते है । जैसे - मुसलमान सूकर पालन नहीं करते और उच्च हिन्दू जातियों के परिवार मुर्गी पालन नहीं करते कुछ मुख्य सामाजिक कारक निम्नांकित है -

  • सामाजिक रीति-रिवाज एवं मान्यतायें - सामाजिक रीति - रिवाज एवं मान्यतायें विभिन्न लाभदायक खेती के उद्यमों को अपनाने में बाधक होते हैं । जैसे - कुलीन हिन्दू मुर्गीपालन, सिख तम्बाकू की खेती तथा मुसलमान सूकर पालन नहीं करते ।
  • कृषक की व्यक्तिगत रूचि - अधिकांश कृषक अपनी रूचि के अनुसार खेती के प्रकार पसन्द करते है तथा बहुत सी खेती के उन्नत तथा नई प्रकारों को भी नहीं अपनाते है । जैसे - सब्जियों की खेती, फलों की खेती, फूलों की खेती आदि ।


3. आर्थिक कारक ( Economic Factors ) -

खेती के प्रकार को निर्धारित करने में आर्थिक कारक काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं ।

कुछ मुख्य आर्थिक कारक निम्नांकित हैं-

  • कृषक की आर्थिक स्थिति
  • भूमि की स्थिति
  • भूमि का मूल्य
  • पूँजी की उपलब्धता
  • श्रम की उपलब्धता
  • विपणन सुविधायें

  • कृषक की आर्थिक स्थिति - आर्थिक रूप से सुदृढ़ किसान ट्रैक्टर, ट्यूबवैल आदि पर व्यय करके यान्त्रिक कृषि अपना सकता है ।
  • भूमि की स्थिति - नगरों के समीप की भूमि में फल, सब्जी, चारे की फसलें, शहरों से दूर की भूमि पर खाद्यान्न फसलें, चीनी मिलों के समीप गन्ने की खेती की जाती है ।
  • भूमि का मूल्य - अधिक कीमती भूमि पर सघन खेती तथा कम मूल्य वाली भूमियों में विस्तृत खेती की जाती है ।
  • पूंजी की उपलब्धता - कुछ फसलों को उगाने में या उद्यमों को शुरू करने में अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है और यदि कृषक के पास अपनी पूँजी नहीं है तो बाहर से उपलब्ध पूँजी से कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है ।
  • श्रम की उपलब्धता - कुछ फसलों के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता होती है जैसे आलू, गन्ना, कपास आदि तथा कुछ फसलें कम श्रम से पैदा की जा सकती है । जहाँ सस्ता श्रम आसानी से उपलब्ध होगा वहाँ आलू, गन्ने आदि की खेती की जा सकती है ।
  • विपणन सुविधायेंविपणन सुविधाओं का प्रभाव सीधे रूप से विपणन लागत, परिवहन लागत, उपज का उचित मूल्य मिलना, ग्राहकों व उपभोक्ताओं की अधिक संख्या आदि से खेती के प्रकार प्रभावित होते है, जैसे मण्डी तथा नगरों के समीप फल, सब्जी, दूध आदि का उत्पादन उपयुक्त रहता है ।


भारत में पुराने जमाने में खेती कैसे होती थी?

वर्तमान मनुष्य के पूर्वज आदि मानव का विकास लगभग 250 हजार वर्ष पूर्व होने की परिकल्पना की गई है तथा वर्तमान मनुष्य का प्रादुर्भाव लगभग 35 हजार वर्ष पूर्व अफ्रीका में हुआ माना गया है ।

अपने सहचर जीवों की अपेक्षा मानव की प्रमुख विशेषता मस्तिष्क का विकास एवं समस्या समाधान के लिए मस्तिष्क का प्रयोग करना है । इसी के बलबूते अपने उद्भव काल से ही मनुष्य निरन्तर विकासमान रहा है । भोजन एवं अन्य शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य ने कृषि का विकास किया तथा कालान्तर में इसके अनेक स्वरूपों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें सामान्य रूप से खेती के प्रकार (kheti ke prkar) कहा जाता है ।

खेती को सुनिश्चित करने की कार्य पद्धति (methodology) है, जिसके द्वारा क्षेत्र विशेष की पहचान कर परिसीमन (demarcation) किया जा सकता है । कृषि (kheti) प्रकार के निर्धारण में भौतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक आदि कारकों से होता है ।

इन कारकों के विचरकों (variables) में जलवायु, उच्चावच, भूमि की उत्पादकता, भूमि सक्षमता, कृषि में मानव श्रम, कृषि में पशुशक्ति, कृषि हेतु मशीनीकरण, उर्वरक, सिंचाई, शस्य प्रतिरूप, वाणिज्यीकरण की मात्रा आदि को सम्मिलित करते हैं ।

इन्ही विचरकों के प्रभेद से खेती (kheti) के प्रकार में भिन्नता की जाती है ।